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अध्याय आठ

निराशा के बावजूद उसने धीरज रखा

निराशा के बावजूद उसने धीरज रखा

1. शीलो में हर कहीं मातम क्यों छाया हुआ था?

शमूएल, शीलो के लोगों का दर्द समझ सकता था। चारों तरफ मातम छाया हुआ था। तकरीबन हर घर से औरतों और बच्चों का रोना-बिलखना सुनायी दे रहा था, क्योंकि उन्हें खबर मिली थी कि उनके पिता, पति, बेटे और भाई अब कभी घर लौटकर नहीं आएँगे। ऐसा लग रहा था पूरा शहर उनके आँसुओं में डूब जाएगा। पलिश्‍तियों से हुई इस भयंकर लड़ाई में करीब 30,000 इसराएली सैनिकों की जान चली गयी थी। कुछ समय पहले ही एक युद्ध में करीब 4,000 इसराएली मारे गए थे।​—1 शमू. 4:1, 2, 10.

2, 3. किन विपत्तियों की वजह से शीलो की शान मिट गयी?

2 यह उन विपत्तियों में से एक थी जो इसराएलियों पर टूट पड़ी थीं। महायाजक एली के दो दुष्ट बेटे, होप्नी और फिनेहास करार का पवित्र संदूक शहर से बाहर ले गए थे। यह अनमोल संदूक परमेश्‍वर की मौजूदगी की निशानी था। इसे हमेशा पवित्र डेरे के परम-पवित्र भाग में रखा जाता था। लोग करार का संदूक युद्ध के मैदान में इसलिए ले गए क्योंकि उन्हें लगा कि उसमें कोई जादुई ताकत है जो उन्हें जीत दिला सकती है। यह बहुत बड़ी बेवकूफी थी! इसराएलियों को जीत के बजाय हार का मुँह देखना पड़ा। पलिश्‍ती संदूक उठाकर ले गए और उन्होंने होप्नी और फिनेहास को मौत के घाट उतार दिया।​—1 शमू. 4:3-11.

3 शीलो के पवित्र डेरे में सदियों से करार का संदूक होने की वजह से उस शहर का बहुत नाम था। लेकिन अब संदूक वहाँ नहीं था। जब 98 साल के एली ने यह खबर सुनी तो वह अपनी कुर्सी से पीछे की तरफ गिर पड़ा और उसकी मौत हो गयी। उसकी बहू भी उसी दिन बच्चे को जन्म देते वक्‍त मर गयी। मरने से पहले उसने कहा, “इसराएल की शान बँधुआई में चली गयी।” वाकई, शीलो की शान अब पहले जैसी कभी नहीं रहती।​—1 शमू. 4:12-22.

4. हम इस अध्याय में क्या सीखेंगे?

4 यह सब देखकर शमूएल बहुत निराश हुआ होगा। उसने इन हालात का सामना कैसे किया? क्या उसका विश्‍वास इतना मज़बूत था कि वह उन लोगों की मदद कर पाता जो यहोवा की मंज़ूरी खो बैठे थे और जिन पर से परमेश्‍वर का साया उठ चुका था? आज हम सब कभी-न-कभी जीवन में मुश्‍किलों और निराशा का सामना करते हैं और ऐसे में हमारे विश्‍वास की परख होती है। इसलिए आइए देखें कि हम शमूएल से क्या सीख सकते हैं।

उसने “नेकी को बढ़ावा दिया”

5, 6. (क) बाइबल 20 सालों का ज़िक्र करते वक्‍त क्या बताती है? (ख) उन सालों के दौरान शमूएल क्या करता था?

5 पलिश्‍तियों के साथ हुए इस युद्ध का ज़िक्र करने के बाद, बाइबल करार के संदूक के बारे में बताती है। संदूक अपने पास रखने की वजह से पलिश्‍तियों को कई मुश्‍किलें झेलनी पड़ीं और उन्हें मजबूरन उसे वापस करना पड़ा। इस घटना के करीब 20 साल बाद फिर से शमूएल का ज़िक्र किया गया है। (1 शमू. 7:2) उन 20 सालों के दौरान वह क्या करता था? हमें इस बारे में अटकलें लगाने की ज़रूरत नहीं।

शमूएल ने कैसे अपने लोगों को निराशा और अज़ीज़ों को खोने का गम सहने में मदद दी?

6 बाइबल बताती है कि 20 साल पहले “शमूएल का संदेश पूरे इसराएल में फैलता गया।” (1 शमू. 4:1) और 20 सालों के बाद के समय का ज़िक्र करते हुए बाइबल बताती है कि शमूएल हर साल इसराएल के तीन शहरों का दौरा करता था। वहाँ वह लोगों के झगड़े सुलझाता और उनके मामले निपटाता था। फिर वह अपने शहर रामाह लौट आता था। (1 शमू. 7:15-17) इन बातों से साफ है कि बीच के उन 20 सालों के दौरान भी शमूएल ज़रूर इसी तरह लोगों की मदद करने में लगा रहा होगा।

बाइबल नहीं बताती कि 20 सालों के दौरान शमूएल ने क्या किया था, फिर भी हम यकीन रख सकते हैं कि वह ज़रूर यहोवा की सेवा में लगा रहा होगा

7, 8. (क) शमूएल ने 20 साल कड़ी मेहनत करने के बाद लोगों को क्या संदेश सुनाया? (ख) उसने जब लोगों को भरोसा दिलाया तो उन्होंने क्या किया?

7 एली के बेटों की अनैतिकता और भ्रष्टाचार की वजह से लोगों का यहोवा पर से विश्‍वास उठ गया था। ऐसा लगता है कि इस वजह से बहुत-से लोग मूर्तिपूजा करने लगे थे। शमूएल ने 20 साल कड़ी मेहनत करके लोगों की मदद करने के बाद उन्हें यह संदेश सुनाया, “अगर तुम वाकई पूरे दिल से यहोवा के पास लौट रहे हो, तो अपने बीच से पराए देवताओं की मूरतें और अशतोरेत देवी की मूरतें निकाल दो। और अपना दिल पूरी तरह यहोवा पर लगाओ और सिर्फ उसकी सेवा करो, तब वह तुम्हें पलिश्‍तियों के हाथ से छुड़ाएगा।”​—1 शमू. 7:3.

8 इसराएलियों पर ‘पलिश्‍तियों का हाथ’ भारी पड़ रहा था। इसराएली सेना बुरी तरह हार गयी थी, इसलिए पलिश्‍तियों को लगा कि वे बिना किसी रोक-टोक के परमेश्‍वर के लोगों को सता सकते हैं। लेकिन शमूएल ने लोगों को भरोसा दिलाया कि अगर वे यहोवा के पास लौट आएँगे तो हालात ज़रूर बदलेंगे। क्या वे ऐसा करने के लिए तैयार थे? शमूएल को यह देखकर बड़ी खुशी हुई कि लोगों ने अपनी मूर्तियाँ निकाल दीं और “वे सिर्फ यहोवा की सेवा करने लगे।” शमूएल ने मिसपा नगर में लोगों को इकट्ठा होने के लिए कहा, जो यरूशलेम के उत्तरी पहाड़ी इलाके में था। वहाँ लोगों ने उपवास और पश्‍चाताप किया क्योंकि उन्होंने मूर्तिपूजा से जुड़े कई पाप किए थे।​—1 शमूएल 7:4-6 पढ़िए।

जब पश्‍चाताप करनेवाले इसराएलियों की भीड़ एक जगह इकट्ठा थी तो पलिश्‍तियों ने सोचा कि यह उन पर हमला करने का बढ़िया मौका है

9. (क) पलिश्‍तियों ने किस मौके का फायदा उठाने की सोची? (ख) खतरे को आता देख इसराएलियों ने क्या किया?

9 जब पलिश्‍तियों को पता चला कि इसराएलियों की एक बड़ी भीड़ मिसपा में इकट्ठा हुई है तो उन्होंने मौके का फायदा उठाने की सोची। उन्होंने यहोवा के उन उपासकों का खात्मा करने के लिए अपनी सेना वहाँ भेजी। इसराएली इस खतरे के बारे में सुनकर बहुत डर गए और उन्होंने शमूएल से प्रार्थना करने को कहा। उसने यहोवा से प्रार्थना की और बलिदान भी चढ़ाया। वह बलिदान चढ़ा ही रहा था कि तभी पलिश्‍ती सेना मिसपा पहुँच गयी। तब यहोवा ने शमूएल की प्रार्थना का जवाब दिया और पलिश्‍तियों पर अपना क्रोध भड़काया। उसने “पलिश्‍तियों पर ज़ोर का गरजन करवाया।”​—1 शमू. 7:7-10.

10, 11. (क) यहोवा ने पलिश्‍तियों पर जो गरजन करवाया वह क्यों अनोखा रहा होगा? (ख) मिसपा में हुए युद्ध का क्या अंजाम हुआ?

10 पलिश्‍ती छोटे बच्चों की तरह नहीं थे जो बादलों के गरजन से घबराकर अपनी माँ के आँचल में दुबक जाते हैं। वे बहुत ही ताकतवर और जाँबाज़ सैनिक थे जिन्होंने कई युद्ध लड़े थे। फिर भी वे घबरा गए जिससे पता चलता है कि उन्होंने ऐसा गरजन पहले कभी नहीं सुना था। क्या वह गरजन बहुत ज़ोरदार था? या आसमान साफ था और अचानक ही यह आवाज़ सुनाई दी? या फिर वह आवाज़ पहाड़ों से गूँज उठी थी जिससे वे उलझन में पड़ गए? चाहे जो भी हुआ हो, उस गरजन ने पलिश्‍तियों को हिलाकर रख दिया। वे ऐसे उलझन में पड़ गए कि शिकारी खुद शिकार बन गए! इसराएली मिसपा से निकलकर पलिश्‍तियों पर टूट पड़े और वे उन्हें काफी दूर यरूशलेम के दक्षिण-पश्‍चिम इलाके की ओर खदेड़ते गए।​—1 शमू. 7:11.

11 युद्ध ने पासा पलट दिया। इसके बाद जितने दिन तक शमूएल न्यायी के तौर पर सेवा करता रहा, पलिश्‍ती हारते गए। परमेश्‍वर के लोगों ने एक-एक करके अपने शहरों पर दोबारा कब्ज़ा कर लिया।​—1 शमू. 7:13, 14.

12. (क) इसका क्या मतलब है कि शमूएल ने “नेकी को बढ़ावा दिया” था? (ख) किन गुणों की वजह से वह कामयाब हुआ?

12 सदियों बाद प्रेषित पौलुस ने शमूएल का ज़िक्र उन वफादार न्यायियों और भविष्यवक्‍ताओं के साथ किया जिन्होंने “नेकी को बढ़ावा दिया” था। (इब्रा. 11:32, 33) शमूएल ने हमेशा ऐसे काम किए जो परमेश्‍वर की नज़र में नेक और सही थे और उसने लोगों को भी ऐसे काम करने का बढ़ावा दिया। वह इसलिए कामयाब हो पाया क्योंकि उसने सब्र से काम लेते हुए यहोवा पर भरोसा दिखाया और निराशा के बावजूद अपने काम में लगा रहा। शमूएल ने एहसानमंदी की भावना भी दिखायी। मिसपा में मिली जीत के बाद उसने वहाँ एक पत्थर खड़ा किया ताकि लोग याद रखें कि यहोवा ने कैसे अपने लोगों की मदद की थी।​—1 शमू. 7:12.

13. (क) शमूएल की तरह बनने के लिए हममें कौन-से गुण होने चाहिए? (ख) शमूएल की तरह कब से अपने अंदर ऐसे गुण बढ़ाना अच्छा रहेगा?

13 क्या आप भी ‘नेकी को बढ़ावा देना’ चाहते हैं? अगर हाँ, तो अच्छा होगा कि आप शमूएल की तरह सब्र रखना, नम्र बनना और एहसानमंदी दिखाना सीखें। (1 पतरस 5:6 पढ़िए।) हममें से हर किसी को ये गुण बढ़ाने की ज़रूरत है। शमूएल ने बचपन से ही अपने अंदर ये गुण बढ़ाए थे, इसलिए आगे चलकर उसका भला हुआ। बाद में जब उसे कई बार गहरी निराशा का सामना करना पड़ा तो इन गुणों की वजह से ही वह हिम्मत नहीं हारा।

“तेरे बेटे तेरे नक्शे-कदम पर नहीं चलते”

14, 15. (क) शमूएल जब “बूढ़ा हो गया” तब वह किस वजह से बहुत निराश हुआ? (ख) क्या शमूएल, एली की तरह एक बुरा पिता था? समझाइए।

14 बाइबल में अगली बार जब शमूएल का ज़िक्र आता है तब तक वह “बूढ़ा हो गया” था। शमूएल के दोनों बेटे योएल और अबियाह बड़े हो चुके थे। उसने उन पर भरोसा करके उन्हें ज़िम्मेदारी सौंपी कि वे न्याय करने में उसकी मदद करें। मगर दुख की बात है कि उन्होंने शमूएल का भरोसा तोड़ दिया। हालाँकि शमूएल ईमानदार और नेक था, मगर उसके बेटों ने अपने ओहदे का गलत इस्तेमाल किया। वे घूस लेते और गलत फैसला सुनाकर अन्याय करते थे।​—1 शमू. 8:1-3.

15 एक दिन इसराएल के प्रधानों ने शमूएल से यह शिकायत की, “तेरे बेटे तेरे नक्शे-कदम पर नहीं चलते।” (1 शमू. 8:4, 5) क्या शमूएल को अपने बेटों के बुरे कामों की खबर थी? बाइबल इस बारे में कुछ नहीं बताती। लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि शमूएल, एली की तरह बुरा पिता नहीं था। एली को यहोवा ने फटकारा था और सज़ा दी थी, क्योंकि उसने अपने बेटों को सुधारने की कोशिश नहीं की और परमेश्‍वर से ज़्यादा अपने बेटों का आदर किया। (1 शमू. 2:27-29) मगर यहोवा ने शमूएल में ऐसी गलती नहीं पायी।

जब शमूएल के बेटे बुरे काम करने लगे तो उसने इस निराशा का कैसे सामना किया?

16. (क) उन माता-पिताओं पर क्या बीतती है जिनके बच्चे बागी बन जाते हैं? (ख) वे शमूएल की मिसाल से कैसे दिलासा और सीख पा सकते हैं?

16 बाइबल यह नहीं बताती कि जब शमूएल को अपने बेटों के बुरे कामों का पता चला तो उसे कितनी शर्मिंदगी, दुख या निराशा हुई। लेकिन बहुत-से माता-पिता समझ सकते हैं कि उस पर क्या बीती होगी। आज के इस बुरे वक्‍त में माता-पिता से बगावत करना और उनकी शिक्षा ठुकराना बहुत आम हो गया है। (2 तीमुथियुस 3:1-5 पढ़िए।) जो माता-पिता इस तरह के दर्द से गुज़र रहे हैं, वे शमूएल की मिसाल से दिलासा पा सकते हैं और उससे काफी कुछ सीख सकते हैं। अपने बेटों को विश्‍वास से भटकते देखने के बावजूद वह वफादार बना रहा। याद रखिए, माँ-बाप के बार-बार समझाने और सिखाने का बच्चों पर भले ही कोई असर न हो, फिर भी माँ-बाप अपनी अच्छी मिसाल से उन्हें बहुत कुछ सिखा सकते हैं। और शमूएल की तरह, माता-पिताओं के सामने हमेशा यह मौका रहता है कि वे खुद ऐसे काम करें जिनसे उनके पिता यहोवा को उन पर नाज़ हो।

“हम पर एक राजा ठहरा”

17. (क) इसराएल के प्रधानों ने शमूएल से क्या माँग की? (ख) यह सुनकर शमूएल को कैसा लगा?

17 शमूएल के बेटों को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उनके लालच और स्वार्थ का कितना बुरा अंजाम हो सकता है। इसराएल के प्रधानों ने शमूएल से कहा, “दूसरे राष्ट्रों की तरह हमारा न्याय करने के लिए हम पर एक राजा ठहरा।” क्या लोगों की इस माँग से शमूएल को लगा कि वे उसे ठुकरा रहे हैं? आखिर वही सालों से यहोवा की तरफ से लोगों का न्याय कर रहा था। मगर अब वे चाहते थे कि शमूएल की तरह कोई भविष्यवक्‍ता नहीं बल्कि एक राजा उनका न्याय करे। आस-पास के राष्ट्रों के राजा थे, इसलिए इसराएलियों को भी एक राजा चाहिए था! यह सुनकर शमूएल को कैसा लगा? हम पढ़ते हैं, “शमूएल को यह बात बहुत बुरी लगी।”​—1 शमू. 8:5, 6.

18. यहोवा ने कैसे शमूएल को दिलासा दिया और यह भी बताया कि लोगों ने एक गंभीर पाप किया है?

18 गौर कीजिए कि जब शमूएल ने यहोवा से इस बारे में प्रार्थना की तो यहोवा ने उसे क्या जवाब दिया। उसने शमूएल से कहा, “लोगों ने तुझसे जो गुज़ारिश की है, तू वही कर क्योंकि उन्होंने तुझे नहीं, मुझे ठुकराया है। उन्होंने मुझे अपना राजा मानने से इनकार कर दिया है।” यह सुनकर शमूएल को कितना दिलासा मिला होगा। लेकिन सोचिए, ऐसी माँग करके इसराएलियों ने सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर का कितना अपमान किया! यहोवा ने शमूएल से कहा कि वह लोगों को चेतावनी दे कि अगर वे चाहते हैं, एक इंसान उन पर राज करे तो उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। शमूएल ने उन्हें यह चेतावनी दी, फिर भी वे अपनी बात पर अड़े रहे और कहने लगे, “नहीं, हमें हर हाल में एक राजा चाहिए।” फिर यहोवा ने शमूएल को आज्ञा दी कि वह जाकर उस आदमी का अभिषेक करे जिसे उसने राजा चुना है। शमूएल ने हमेशा की तरह उसकी आज्ञा मानी।​—1 शमू. 8:7-19.

19, 20. (क) जब शमूएल से कहा गया कि वह शाऊल का अभिषेक करे तो उसने किस भावना से यह आज्ञा मानी? (ख) शमूएल कैसे यहोवा के लोगों की मदद करता रहा?

19 शमूएल ने किस भावना से परमेश्‍वर की आज्ञा मानी? क्या उसने मन मारकर और सिर्फ दिखावे के लिए आज्ञा मानी? क्या वह इतना निराश हो गया कि उसके दिल में कड़वाहट भर गयी? कई लोग शायद ऐसा करें, लेकिन शमूएल ने ऐसा नहीं किया। उसने शाऊल का अभिषेक किया और माना कि वह यहोवा का चुना हुआ राजा है। उसने शाऊल को चूमा जो इस बात की निशानी थी कि वह उसे इसराएल का नया राजा कबूल करता है और उसके अधीन रहने के लिए तैयार है। उसने लोगों से कहा, “देखो, यहोवा ने तुम्हारे लिए कितना बढ़िया आदमी चुना है! इसके जैसा लोगों में और कोई नहीं है।”​—1 शमू. 10:1, 24.

20 शमूएल ने यहोवा के चुने हुए राजा की खामियों पर नहीं बल्कि उसकी खूबियों पर गौर किया। इसके अलावा, उसका पूरा ध्यान इस बात पर लगा था कि वह परमेश्‍वर का वफादार रहे, न कि लोगों की मंज़ूरी पाने की कोशिश करे जिनकी राय बदलती रहती है। (1 शमू. 12:1-4) साथ ही, वह अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने में लगा रहा, लोगों को उन खतरों से खबरदार करता रहा जिनकी वजह से परमेश्‍वर के साथ उनका रिश्‍ता बिगड़ सकता है और उसने उन्हें यहोवा के वफादार रहने का बढ़ावा दिया। उसकी बातें लोगों के दिल तक पहुँच गयीं और उन्होंने उससे बिनती की कि वह उनके लिए प्रार्थना करे। जवाब में शमूएल ने उनसे बहुत ही बढ़िया बात कही, “मैं भी तुम लोगों की खातिर प्रार्थना करना कभी नहीं छोड़ूँगा। मैं ऐसा करने की कभी सोच भी नहीं सकता क्योंकि यह यहोवा के खिलाफ पाप होगा। मैं आगे भी तुम लोगों को भले और सही रास्ते पर चलने की हिदायत देता रहूँगा।”​—1 शमू. 12:21-24.

शमूएल से हम सीखते हैं कि अपने दिल में जलन या कड़वाहट को जगह नहीं देनी चाहिए

21. जब किसी और को ज़िम्मेदारी या सेवा का खास मौका मिलने पर आप निराश हो जाते हैं, तो शमूएल से आप क्या सीख सकते हैं?

21 क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आपके बदले किसी और को ज़िम्मेदारी का पद या सेवा का खास मौका दिया गया? क्या उस वक्‍त आप निराश हो गए थे? शमूएल की मिसाल से हमें एक ज़बरदस्त सीख मिलती है कि हमें कभी-भी अपने दिल में जलन या कड़वाहट को जगह नहीं देनी चाहिए। (नीतिवचन 14:30 पढ़िए।) परमेश्‍वर के पास अपने हर वफादार सेवक को देने के लिए बहुत सारा काम है जो उन्हें खुशी दे सकता है।

“तू कब तक शाऊल के लिए शोक मनाता रहेगा?”

22. शमूएल ने शाऊल की खूबियों पर ध्यान देकर क्यों सही किया?

22 शमूएल ने शाऊल की खूबियों पर ध्यान देकर सही किया, क्योंकि उसकी शख्सियत गौर करने लायक थी। वह लंबा-चौड़ा, बहुत खूबसूरत, साहसी और बहुत काबिल था, फिर भी वह अपनी मर्यादा में रहता था और दिखावा नहीं करता था। (1 शमू. 10:22, 23, 27) इन खूबियों के अलावा उसे ज़िंदगी के फैसले खुद लेने की भी आज़ादी थी। (व्यव. 30:19) क्या उसने इस आज़ादी का सही इस्तेमाल किया?

23. (क) अधिकार पाने के बाद शाऊल ने कौन-सा अनमोल गुण खो दिया? (ख) वह कैसे दिनों-दिन घमंडी होता गया?

23 दुख की बात है कि जब किसी को कोई अधिकार मिलता है तो सबसे पहले वह अपनी मर्यादा में रहना भूल जाता है। शाऊल के साथ भी ऐसा ही हुआ। राजा बनने के कुछ ही समय बाद वह घमंडी बन गया। यहोवा उसे शमूएल के ज़रिए जो आज्ञाएँ देता था, उन्हें वह नहीं मानता था। एक बार उसने उतावला होकर वह बलिदान चढ़ा दिया जो शमूएल को चढ़ाना था। शमूएल ने उसे कड़ी फटकार लगायी और भविष्यवाणी की कि आगे चलकर राज करने का अधिकार उसके घराने से छीन लिया जाएगा। शाऊल ने सुधरने के बजाय यहोवा की आज्ञा तोड़कर और भी बुरे-बुरे काम किए।​—1 शमू. 13:8, 9, 13, 14.

24. (क) अमालेकियों से युद्ध करने के मामले में शाऊल ने कैसे यहोवा की आज्ञा तोड़ दी? (ख) जब शाऊल को फटकारा गया तो उसने क्या किया और यहोवा ने क्या फैसला सुनाया?

24 यहोवा ने शमूएल के ज़रिए शाऊल से कहा कि वह जाकर अमालेकियों से युद्ध करे। यहोवा ने उसे यह आज्ञा भी दी कि अमालेकियों के दुष्ट राजा अगाग को मार डाला जाए और लूट में मिली चीज़ें नष्ट कर दी जाएँ। मगर शाऊल ने अगाग को नहीं मारा और लूट में मिली अच्छी-अच्छी चीज़ों को भी नष्ट नहीं किया। जब शमूएल ने उसे बताया कि ऐसा करके उसने गलत किया है, तो जवाब में शाऊल ने उससे जो कहा उससे पता चलता है कि अब वह बहुत बदल चुका था। नम्र होकर अपनी गलती मानने के बजाय उसने खुद को सही ठहराने और बात बदलने की कोशिश की, बहाने बनाए और अपना दोष दूसरों पर मढ़ दिया। शाऊल ने कहा कि उसने कुछ जानवर इसलिए ज़िंदा छोड़ दिए ताकि यहोवा के लिए उनका बलिदान कर सके। ऐसा कहकर उसने शमूएल की सलाह को बेमाने ठहराने की कोशिश की। तब शमूएल ने ये जाने-माने शब्द कहे, “देख, यहोवा की आज्ञा मानना बलिदान चढ़ाने से कहीं बढ़कर है।” शमूएल ने हिम्मत के साथ शाऊल को फटकारा और यहोवा का यह फैसला सुनाया: राज करने का अधिकार शाऊल से छीनकर दूसरे आदमी को दे दिया जाएगा जो उससे बेहतर होगा। *​—1 शमू. 15:1-33.

25, 26. (क) शमूएल ने शाऊल के लिए क्यों शोक मनाया? (ख) यहोवा ने कैसे प्यार से शमूएल की सोच सुधारी? (ग) जब शमूएल यिशै के घर गया तो उसे क्या सीख दी गयी?

25 शाऊल की कमियाँ देखकर शमूएल निराशा में डूब गया। उसने पूरी रात रो-रोकर यहोवा से प्रार्थना की। यहाँ तक कि वह शाऊल की वजह से शोक मनाता रहा। शमूएल ने सोचा था कि शाऊल परमेश्‍वर की सेवा में बहुत कुछ करेगा, मगर उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया था। शाऊल अब वह शाऊल नहीं रहा जिसे शमूएल जानता था। उसने अपने सारे अच्छे गुण खो दिए और वह यहोवा के खिलाफ काम करने लगा। शमूएल अब फिर कभी शाऊल का मुँह नहीं देखना चाहता था। लेकिन कुछ समय बाद यहोवा ने प्यार से शमूएल की सोच सुधारी और कहा, “तू कब तक शाऊल के लिए शोक मनाता रहेगा? मैंने उसे ठुकरा दिया है। वह आगे इसराएल का राजा नहीं रहेगा। तू सींग में तेल भरकर बेतलेहम के रहनेवाले यिशै के घर जा क्योंकि मैंने उसके बेटों में से एक को राजा चुना है।”​—1 शमू. 15:34, 35; 16:1.

26 यहोवा अपना मकसद पूरा करने के लिए इंसानों पर निर्भर नहीं रहता, जो आज वफादार हैं तो कल दगाबाज़ निकलते हैं। अगर एक इंसान दगाबाज़ निकलता है तो यहोवा किसी और को अपनी मरज़ी पूरी करने के लिए चुन लेता है। इसलिए बुज़ुर्ग शमूएल ने शाऊल के लिए शोक मनाना छोड़ दिया। यहोवा के निर्देश के मुताबिक शमूएल बेतलेहेम में यिशै के घर गया जहाँ उसकी मुलाकात यिशै के कई बेटों से हुई जो दिखने में बहुत खूबसूरत थे। लेकिन यहोवा ने शुरू में ही उसे याद दिलाया कि वह इंसान के रंग-रूप पर न जाए। (1 शमूएल 16:7 पढ़िए।) आखिर में वह यिशै के सबसे छोटे बेटे से मिला और उसी को यहोवा ने चुना था। उसका नाम था दाविद!

शमूएल ने देखा कि चाहे एक समस्या कितना ही निराश कर दे वह यहोवा के लिए इतनी बड़ी समस्या नहीं कि उसे हल न कर पाए या आशीष में न बदल सके

27. (क) किस बात से शमूएल का विश्‍वास मज़बूत होता गया? (ख) शमूएल की अच्छी मिसाल के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

27 अपने जीवन के आखिरी सालों में शमूएल और अच्छी तरह देख पाया कि शाऊल की जगह दाविद को राजा बनाने का यहोवा का फैसला बिलकुल सही था। शाऊल इस कदर दाविद से जलने लगा कि उसने दाविद को मार डालना चाहा और परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत भी की। दूसरी तरफ दाविद ने हिम्मत, विश्‍वास और वफादारी जैसे मनभावने गुण ज़ाहिर किए और निर्दोष चालचलन बनाए रखा। अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर पहुँचने तक शमूएल का विश्‍वास और मज़बूत हो गया था। उसने अपने तजुरबे से जाना कि चाहे एक समस्या कितनी ही बड़ी क्यों न हो और चाहे हमें कितना ही निराश कर दे, वह यहोवा के लिए इतनी बड़ी नहीं कि उसे हल न कर पाए या आशीष में न बदल दे। शमूएल ने करीब 100 साल तक यहोवा की सेवा की और वफादारी का एक बेहतरीन रिकॉर्ड कायम किया। इसलिए ताज्जुब नहीं कि उसकी मौत पर पूरे इसराएल ने मातम मनाया। आज भी यहोवा के सेवकों को खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मेरे अंदर शमूएल जैसा विश्‍वास है?’

^ पैरा. 24 शमूएल ने खुद अगाग को मार डाला। न वह दुष्ट राजा न ही उसका परिवार रहम के लायक था। इस घटना के सदियों बाद जिस “अगागी हामान” ने परमेश्‍वर के सभी लोगों को मिटाने की कोशिश की, वह शायद अगाग का ही एक वंशज था।​—एस्ते. 8:3; इस किताब के अध्याय 15 और 16 देखें।