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जीवन कहानी

मैं मसीह का सैनिक हूँ, उसी का सैनिक रहूँगा

मैं मसीह का सैनिक हूँ, उसी का सैनिक रहूँगा

मैं एक जगह दुबककर बैठा था और मेरे चारों तरफ धाँय-धाँय गोलियाँ चल रही थीं। फिर मैंने सफेद रूमाल निकाला और धीरे से उसे ऊपर उठाया। गोली चलानेवाले सैनिकों ने चिल्लाकर कहा, ‘बाहर आओ।’ मैं उठकर आहिस्ता-आहिस्ता उनकी तरफ जाने लगा। मैं नहीं जानता था कि मैं ज़िंदा बचूँगा या नहीं। आप शायद सोच रहे होंगे कि मैं इस मुसीबत में कैसे पड़ा? आइए बताता हूँ।

मेरा जन्म 1926 में यूनान के एक छोटे-से गाँव करित्ज़ा में हुआ। हम आठ भाई-बहन थे और मैं अपने माँ-बाप का सातवाँ बच्चा था। हमारे माँ-बाप बहुत मेहनती थे।

मेरे जन्म से एक साल पहले मेरे माँ-बाप की मुलाकात जॉन पपारिज़ोस से हुई। वह एक जोशीला और बातूनी बाइबल विद्यार्थी था (उन दिनों यहोवा के साक्षियों को बाइबल विद्यार्थियों के नाम से जाना जाता था)। भाई जॉन ने मेरे माँ-बाप को बाइबल से बढ़िया दलीलें दीं। इसका उन पर इतना गहरा असर हुआ कि वे बाइबल विद्यार्थियों की सभाओं में जाने लगे। माँ को यहोवा पर अटूट विश्वास था। हालाँकि वह पढ़ी-लिखी नहीं थी फिर भी वह हर मौके पर दूसरों को अपने विश्वास के बारे में बताती थी। अफसोस पिताजी भाई-बहनों की खामियों पर कुछ ज़्यादा ही ध्यान देने लगे और उन्होंने मसीही सभाओं में धीरे-धीरे आना बंद कर दिया।

मैं और मेरे भाई-बहन बाइबल का आदर करते थे लेकिन हमारा ज़्यादातर वक्‍त खेलकूद में और यार-दोस्तों के साथ मस्ती करने में निकल जाता था। फिर 1939 में यूरोप में दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। उस दौरान हमारे गाँव में एक ऐसी घटना घटी जिसने हमें हिलाकर रख दिया। पड़ोस में रहनेवाले हमारे चचेरे भाई निकोलस सारस को यूनान की सेना में भरती होने के लिए बुलाया गया। उसका हाल ही में बपतिस्मा हुआ था और वह सिर्फ 20 साल का था। निकोलस ने सेना-अधिकारियों के सामने निडर होकर कहा, “मैं सेना में भरती नहीं हो सकता। मैं मसीह का सैनिक हूँ।” उसे सैन्य अदालत में लाया गया और 10 साल जेल की सज़ा दी गयी। यह सुनकर हमें धक्का लगा!

सन्‌ 1941 की शुरूआत में मित्र-राष्ट्रों की एक सेना कुछ समय के लिए यूनान में आयी। इसका एक फायदा यह हुआ कि निकोलस को जेल से रिहा कर दिया गया। वह वापस करित्ज़ा आ गया। तब मेरे बड़े भाई इलीआस ने उससे एक-के-बाद-एक बाइबल पर कई सवाल किए। मैं सारी बातें ध्यान से सुन रहा था। इसके बाद मैं, इलीआस और हमारी छोटी बहन एफमौरफिया बाइबल का अध्ययन करने लगे और लगातार सभाओं में जाने लगे। अगले साल हम तीनों ने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया और बपतिस्मा लिया। आगे चलकर हमारे चार और भाई-बहन यहोवा के वफादार सेवक बनें।

सन्‌ 1942 में करित्ज़ा मंडली में नौ ऐसे भाई-बहन थे जिनकी उम्र 15 और 25 के बीच थी। हमें पता था कि हमें आगे मुश्किल-से-मुश्किल परीक्षाओं का सामना करना पड़ेगा, इसलिए हम तैयारी करने लगे। हम अकसर साथ मिलकर बाइबल का अध्ययन करते थे, उपासना के गीत गाते थे और प्रार्थना करते थे। इस तरह हमारा विश्वास मज़बूत हुआ।

करित्ज़ा में डिमीट्रीयस और दूसरे साक्षी

गृह-युद्ध

जैसे ही दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने लगा, यूनान के कम्यूनिस्ट लोगों ने सरकार के खिलाफ बगावत की। इससे देश में गृह-युद्ध छिड़ गया। कम्यूनिस्ट दल के सैनिक गाँव-देहातों में जाकर लोगों को ज़बरदस्ती अपने दलों में शामिल करने लगे। जब वे हमारे गाँव आए, तो उन्होंने मुझे, इलीआस और एक और जवान भाई एंटोनियो सूकारिस को अगवा कर लिया। हमने बिनती की कि वे हमें छोड़ दें क्योंकि हम मसीही हैं और लड़ाई में किसी का पक्ष नहीं लेते। लेकिन उन्होंने हमारी एक न सुनी और ज़बरदस्ती हमें ओलम्पस पहाड़ की तरफ ले गए, जो हमारे गाँव से करीब 12 घंटे दूर था।

इसके तुरंत बाद, एक कम्यूनिस्ट अफसर ने हमें आदेश दिया कि हम उनके दल में शामिल हो जाएँ। हमने उसे समझाया कि हम सच्चे मसीही किसी से भी लड़ने के लिए हथियार नहीं उठाते। वह अफसर हम पर आग-बबूला हो उठा और हमें घसीटकर एक जनरल के पास ले गया। हमने उससे भी वही बात कही। जनरल ने कहा, “तो एक काम करो। एक खच्चर लो और लड़ाई में घायल होनेवालों को अस्पताल ले जाओ।”

हमने उससे कहा, “अगर सरकार के सैनिकों ने हमें पकड़ लिया तब क्या होगा? क्या उन्हें नहीं लगेगा कि हम भी कम्यूनिस्ट दल से हैं?” फिर जनरल ने कहा, “तो हमारे सैनिकों के लिए युद्ध में खाना पहुँचाओ।” हमने उसे समझाया, “लेकिन अगर आपका कोई अफसर हमसे कहे कि ये हथियार भी ले जाओ, तब क्या?” जनरल बहुत देर तक सोचता रहा। फिर उसने कहा, “तो पहाड़ पर जाओ और भेड़ें चराओ! इतना तो कर सकते हो ना?”

हमें लगा कि यह काम हमारे ज़मीर के खिलाफ नहीं है। इसलिए जब चारों तरफ गृह-युद्ध चल रहा था, तो हम भेड़ें चरा रहे थे। एक साल बाद इलीआस को घर जाने की इजाज़त मिली ताकि वह हमारी विधवा माँ की देखभाल कर सके। वह घर में सबसे बड़ा था, इसलिए उसे भेजा गया। एंटोनियो बीमार हो गया, इस वजह से उसे भी रिहा कर दिया गया। लेकिन मैं अब भी उनकी कैद में था।

उसी दौरान यूनान की सेना बड़ी तेज़ी से कम्यूनिस्ट दलों का पीछा कर रही थी। जिस दल के लोगों ने मुझे बंदी बना रखा था, वे पहाड़ों से होते हुए पास के अल्बानिया देश की तरफ भागे। लेकिन सरहद के पास पहुँचते ही अचानक यूनानी सैनिकों ने हमें चारों तरफ से घेर लिया। दल के सभी लोग भाग खड़े हुए और सिर्फ मैं ही बच गया। मैं एक कटे हुए पेड़ के पीछे छिप गया। फिर मेरे साथ वही हुआ जैसा मैंने शुरू में बताया।

मैंने यूनानी सैनिकों को बताया कि मुझे कम्यूनिस्ट दल के लोगों ने बंदी बना रखा था। वे मुझे पूछताछ के लिए सेना के एक शिविर में ले गए, जो वराया के पास था। वराया वही शहर है जिसे बाइबल में बिरीया शहर कहा गया है। वहाँ मुझे हुक्म मिला कि मैं सैनिकों के छिपने और लड़ने के लिए गड्ढे खोदूँ। मैंने साफ इनकार कर दिया। इसलिए वहाँ के अफसर ने मुझे दूर माक्रोनिसोस (माक्रानिसी) द्वीप भेज दिया। यह सबसे खौफनाक जेल थी जिसके नाम से ही लोगों के होश उड़ जाते थे।

एक खौफनाक द्वीप

माक्रोनिसोस द्वीप अटिका तट पर बसा है और एथेन्स से करीब 50 किलोमीटर दूर है। यह एक सूखा, वीरान द्वीप है और यहाँ सड़ी गरमी पड़ती है। इस द्वीप की लंबाई सिर्फ 13 किलोमीटर है और इसकी चौड़ाई करीब ढाई किलोमीटर। फिर भी 1947 से 1958 तक यहाँ 1,00,000 से भी ज़्यादा कैदियों को रखा गया। कुछ कैदी कम्यूनिस्ट थे तो कुछ पर कम्यूनिस्ट होने का इलज़ाम था। ऐसे भी कैदी थे जो पहले आज़ादी के लिए लड़े थे। इन सब कैदियों के बीच सैकड़ों वफादार साक्षी भी थे।

सन्‌ 1949 की शुरूआत में, जब मैं यहाँ आया तो कैदियों को अलग-अलग शिविरों में रखा गया। मुझे ऐसे शिविर में भेजा गया जहाँ कम पहरा था और सैकड़ों आदमी थे। हम करीब 40 लोग एक ही तंबू में सोते थे जबकि तंबू में सिर्फ 10 लोगों के लिए जगह थी। पीने का पानी गंदा और बदबूदार था और खाने में हमें ज़्यादातर दाल और बैंगन मिलते थे। वहाँ धूल और हवा बहुत चलती थी इसलिए जीना मुश्किल था। पर शुक्र है कि हमें बड़े-बड़े पत्थर नहीं उठाने पड़ते थे जैसा दूसरे कई कैदियों को करना पड़ता था। सुबह से शाम तक पत्थरों को ढोते-ढोते न सिर्फ उनका शरीर बल्कि अंदर से भी वे पूरी तरह टूट जाते थे। वह काम किसी वहशियाना ज़ुल्म से कम नहीं था!

माक्रोनिसोस द्वीप में कैद दूसरे साक्षियों के साथ

एक दिन जब मैं समुंदर किनारे चल रहा था तो मैं दूसरे शिविर से आए कई साक्षियों से मिला। हमें एक-दूसरे को देखकर बहुत खुशी हुई। फिर जब भी मौका मिलता हम एक-साथ इकट्ठा होते थे लेकिन इस बात का ध्यान रखते थे कि हम पकड़े न जाएँ। हम बड़ी सावधानी से दूसरे कैदियों को प्रचार भी करते थे। उनमें से कुछ लोग आगे चलकर यहोवा के साक्षी बनें। इन कामों में लगे रहने और प्रार्थना करने से हमें अपने विश्वास को मज़बूत बनाए रखने में मदद मिली।

आग की भट्ठी में

मैं दस महीने तक माक्रोनिसोस द्वीप पर कैद रहा। कैद करनेवालों को लगा कि अब शायद मेरी अक्ल ठिकाने आ गयी है इसलिए उन्होंने सोचा कि अब मुझे सेना में भरती करने का वक्‍त आ गया है। मुझे वरदी पहनने का हुक्म मिला लेकिन मैंने मना कर दिया। फिर मुझे शिविर के कमांडर के सामने लाया गया। मैंने उसे एक कागज़ पर यह लिखकर दिया, “मैं सिर्फ मसीह का सैनिक हूँ और उसी का सैनिक रहूँगा।” कमांडर ने पहले मुझे डराया-धमकाया, फिर वह मुझे दूसरे बड़े अधिकारी के पास ले गया। वह अधिकारी, बिशप का लिबास पहने हुए था। दरअसल वह ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च का प्रधान बिशप था। जब मैंने निडर होकर शास्त्र से उसके सारे सवालों के जवाब दिए, तो उसने गुस्से से चीखकर कहा, “इसका दिमाग खराब हो गया है। ले जाओ इसे यहाँ से!”

अगले दिन सैनिकों ने फिर मुझे वरदी पहनने का हुक्म दिया। जब मैंने इनकार किया तो उन्होंने मुझे घूँसे मारे और लाठी से बुरी तरह पीटा। फिर वे मुझे शिविर के अस्पताल ले गए ताकि पता कर सके कि कहीं मेरी हड्डी तो नहीं टूटी है। इसके बाद वे मुझे घसीटकर वापस मेरे तंबू में ले गए। अगले दो महीने तक हर दिन मेरे साथ यही होता रहा।

मैंने अपने विश्वास से समझौता नहीं किया। यह देखकर सैनिक परेशान हो गए और उन्होंने मेरा विश्वास तोड़ने के लिए एक नयी तरकीब अपनायी। उन्होंने मेरे हाथ पीठ के पीछे बाँध दिए और पैर के तलवों पर मोटी रस्सियों से बुरी तरह मारने लगे। मैं दर्द से तड़प उठा लेकिन मैंने यीशु के ये शब्द याद किए, ‘सुखी हो तुम जब लोग तुम्हें मेरे चेले होने की वजह से बदनाम करें और तुम पर ज़ुल्म ढाएँ। मगन होना और खुशियाँ मनाना इसलिए कि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा इनाम है। उन्होंने तुमसे पहले के भविष्यवक्ताओं पर भी इसी तरह ज़ुल्म ढाए थे।’ (मत्ती 5:11, 12) ऐसा लग रहा था जैसे यह पिटाई कभी खत्म नहीं होनेवाली, फिर मैं बेहोश हो गया और मुझे कुछ पता नहीं चला।

जब मुझे होश आया तो मैं जेल की एक कोठरी में था। वहाँ कड़ाके की ठंड थी। न ओढ़ने के लिए कंबल था, न पीने के लिए पानी और न ही खाने के लिए रोटी थी। फिर भी मैं शांत था और मुझे एक अनोखा सुकून महसूस हो रहा था। वाकई ‘परमेश्वर की शांति सचमुच मेरे दिल और मेरे विचारों की हिफाज़त’ कर रही थी, जैसा बाइबल में लिखा है। (फिलि. 4:7, फु.) अगले दिन एक सैनिक ने दया करके मुझे रोटी और पानी दिया और पहनने के लिए एक कोट भी दिया। एक और सैनिक ने मुझे अपना राशन-पानी दिया। इस तरह और दूसरे कई तरीकों से मैंने यहोवा का प्यार और परवाह महसूस की।

अधिकारियों की नज़र में मैं एक ऐसा बागी था जो कभी सुधर नहीं सकता था। इसलिए वे मुझे एथेन्स ले गए जहाँ मुझे सैन्य अदालत में पेश किया गया। मुझे तीन साल के लिए जेल की सज़ा सुनायी गयी और यारोस (जेरोस) द्वीप भेजा गया। यह द्वीप, माक्रोनिसोस द्वीप के पूरब में 50 किलोमीटर की दूरी पर है।

“हम तुम पर भरोसा कर सकते हैं”

यारोस जेल लाल ईंटों से बनी थी और एक बड़े किले से कम नहीं थी। इसमें 5,000 से ज़्यादा राजनैतिक कैदी थे। यहाँ सात यहोवा के साक्षी भी अपनी निष्पक्षता की वजह से कैद थे। बाइबल का अध्ययन करना सख्त मना था, लेकिन हम सातों छिप-छिपकर अध्ययन करने के लिए इकट्ठा होते थे। जेल में चुपके से प्रहरीदुर्ग की कॉपियाँ भी हम तक पहुँचायी जाती थीं और हम हाथ से लिखकर इनकी नकलें तैयार करते थे और फिर इनका अध्ययन करते थे।

एक दिन हम अध्ययन कर रहे थे कि अचानक एक पहरेदार आ गया और उसने हमारा साहित्य छीन लिया। हमें जेलर के ऑफिस में बुलाया गया। हमें पूरा यकीन था कि हमारी सज़ा बढ़ा दी जाएगी, लेकिन जेलर ने उलटा कहा, “हमें पता है कि तुम किस तरह के लोग हो और हम तुम्हारे विश्वास का आदर करते हैं। हम जानते हैं कि हम तुम पर भरोसा कर सकते हैं। अब जाओ और अपने-अपने काम पर लग जाओ।” जेलर ने एक और मेहरबानी की। उसने हममें से कुछ साक्षियों का जेल का काम हलका कर दिया। इस घटना से यहोवा के लिए हमारे दिल में और कदर बढ़ गयी! हम देख पाए कि जेल में भी अपनी वफादारी बनाए रखने से यहोवा की बड़ाई होती है।

अपने विश्वास में डटे रहने से हमें दूसरे अच्छे नतीजे भी मिले। हमारी जेल में गणित का एक प्रोफेसर था। वह काफी समय से हमारे अच्छे बरताव को देख रहा था। इस वजह से उसने हमारे विश्वास के बारे में हमसे कई सवाल किए। सन्‌ 1951 की शुरूआत में जब हम साक्षियों को रिहा किया गया तो उसी दौरान उसे भी रिहा किया गया। बाद में वह बपतिस्मा लेकर एक साक्षी बन गया और उसने पूरे समय की सेवा शुरू की।

अब भी मसीह का सैनिक हूँ

अपनी पत्नी जैनट के साथ

मेरी रिहाई के बाद मैं अपने परिवार के पास करित्ज़ा लौट गया। कुछ समय बाद मैं अपने देश के कई लोगों के साथ ऑस्ट्रेलिया चला गया और वहाँ के मेलबर्न शहर में बस गया। वहीं मेरी मुलाकात एक मसीही बहन जैनट से हुई और हम दोनों ने शादी कर ली। हमारे एक बेटा और तीन बेटियाँ हुईं और हमने उन्हें बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक जीना सिखाया।

आज मेरी उम्र 90 से भी ज़्यादा है पर मैं मंडली में प्राचीन के नाते सेवा कर रहा हूँ। मेरी पुरानी चोट आज भी मुझे कभी-कभी परेशान करती हैं। जब मैं प्रचार से लौटता हूँ तो मेरे पैरों और बदन में काफी दर्द होता है। लेकिन मैंने ठान लिया है, ‘मैं मसीह का सैनिक हूँ’ और हमेशा रहूँगा।—2 तीमु. 2:3.