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मदद का हाथ बढ़ाइए

मदद का हाथ बढ़ाइए

पवित्र शास्त्र में लिखा है, “सच्चा दोस्त हर समय प्यार करता है और मुसीबत की घड़ी में भाई बन जाता है।”​—नीतिवचन 17:17.

इसका क्या मतलब है?

जब हमारे किसी दोस्त को कोई मानसिक बीमारी हो जाती है, तो शायद हम लाचार महसूस करें। हमें समझ न आए कि हम उसकी मदद कैसे करें। फिर भी हम दिखा सकते हैं कि हमें उसकी परवाह है। इसके लिए हम कुछ कदम उठा सकते हैं। वे कदम क्या हैं?

आप क्या कर सकते हैं?

“हर कोई सुनने में फुर्ती करे।”​—याकूब 1:19.

अपने दोस्त की मदद करने का एक अच्छा तरीका है कि जब वह आपसे बात करना चाहता है, तो उसे बोलने दीजिए और ध्यान से उसकी सुनिए। ज़रूरी नहीं कि उसकी हर बात के बाद आपको कुछ कहना है। पर बीच-बीच में अपनी बातों और हाव-भाव से आप जता सकते हैं कि आप उसकी सुन रहे हैं और आपको उसकी परवाह है। तुरंत उसके बारे में कोई राय कायम मत कीजिए बल्कि उसकी बातों के पीछे छिपी भावनाएँ समझिए। याद रखिए कि वह परेशान है, उसके मुँह से कुछ गलत निकल सकता है जिसका उसे बाद में पछतावा हो।​—अय्यूब 6:2, 3.

“अपनी बातों से तसल्ली दो।”​—1 थिस्सलुनीकियों 5:14.

आपका दोस्त शायद बहुत चिंता में हो या खुद को बेकार समझे। ऐसे में आप उसे यकीन दिला सकते हैं कि आपको उसकी परवाह है। आपको शायद समझ न आए कि आप उसे ठीक-ठीक क्या बोलें, फिर भी आप उसे दिलासा देने और उसका हौसला बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं।

“सच्चा दोस्त हर समय प्यार करता है।”​—नीतिवचन 17:17.

अलग-अलग तरीकों से मदद कीजिए। खुद-ब-खुद सोचने के बजाय कि आप उसकी कैसे मदद करेंगे, उससे पूछिए कि उसे क्या मदद चाहिए। लेकिन अगर वह आपको बताने से हिचकिचाए, तो फिर आप साथ मिलकर कुछ करने के लिए कह सकते हैं, जैसे आप सैर पर जा सकते हैं। या फिर आप उससे पूछ सकते हैं कि क्या उसे खरीदारी करने, घर की साफ-सफाई करने या दूसरे किसी काम में मदद चाहिए।​—गलातियों 6:2.

“सब्र से पेश आओ।”​—1 थिस्सलुनीकियों 5:14.

कई बार शायद आपके दोस्त का बात करने का मन न हो। तब आप उससे कह सकते हैं कि जब भी उसका बात करने का मन करे, वह आपको बुला सकता है और आप उसकी सुनेंगे। यह भी हो सकता है कि मानसिक बीमारी की वजह से आपका दोस्त कुछ ऐसा कह दे या कर दे जिससे आपको ठेस पहुँचे। जैसे, आप दोनों को कहीं जाना था या कुछ करना था मगर ऐन मौके पर वह आपको मना कर देता है। या फिर अचानक वह बात-बात पर चिढ़ने लगता है। ऐसे में सब्र रखिए और उसे समझने की कोशिश कीजिए।​—नीतिवचन 18:24.

आपकी मदद से फर्क पड़ता है

“मैं हमेशा अपनी दोस्त की बात सुनने के लिए तैयार रहती हूँ। भले ही उसकी समस्याओं का हल मेरे पास न हो, फिर भी मैं उसकी बातें ध्यान से सुनती हूँ। कभी-कभी वह बस यह चाहती है कि कोई उसकी बात सुने। इससे उसका मन हलका हो जाता है।”​—फरा, a जिसकी दोस्त को एंज़ाइटी और डिप्रेशन है और इस वजह से वह ठीक से खाना भी नहीं खाती।

“मेरी एक दोस्त मेरा बहुत हौसला बढ़ाती है। एक बार उसने मुझे अपने घर बुलाया और मेरे लिए स्वादिष्ट खाना बनाया। उसका प्यार मेरे दिल को छू गया और फिर मैं अपनी भावनाएँ उसे खुलकर बता पायी। इसके बाद मैं अच्छा महसूस करने लगी।”​—हायून, जिसे डिप्रेशन है।

“सब्र रखना बहुत ज़रूरी है। कभी-कभी मेरी पत्नी कुछ ऐसा कर देती है, जिससे मुझे चिढ़ आ जाती है। पर मैं खुद को याद दिलाता हूँ कि वह स्वभाव से ऐसी नहीं है बल्कि अपनी बीमारी की वजह से ऐसा कर रही है। इसलिए उस पर गुस्सा करने के बजाय मैं उसका लिहाज़ करता हूँ।”​—जेकब, जिसकी पत्नी को डिप्रेशन है।

“मेरी पत्नी मेरा बहुत साथ देती है और मुझे बहुत दिलासा देती है। जब मैं चिंताओं से घिरा होता हूँ, तब कुछ ऐसी चीज़ें होती हैं जिन्हें करने का मेरा मन नहीं करता। ऐसे में वह मेरे साथ कभी ज़बरदस्ती नहीं करती। इस वजह से वह खुद भी कुछ चीज़ें नहीं कर पाती, जो वह करना चाहती है। उसके इसी त्याग और दरियादिली की वजह से मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ।”​—एनरीको, जिसे एंज़ाइटी डिसऑर्डर है।

a कुछ नाम बदल दिए गए हैं।