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नौजवानो, क्या हुआ आपकी मुसकराहट को?

नौजवानो, क्या हुआ आपकी मुसकराहट को?

अदिति * कहती है, “जब कभी मैं गहरी निराशा में होती हूँ, तो मेरा कुछ भी करने का मन नहीं करता, वे काम भी नहीं, जो मैं शौक से करती हूँ। दिल करता है कि बस सोती रहूँ। मुझे लगता है कि मैं किसी के प्यार के लायक नहीं, किसी काम की नहीं, बस दूसरों पर एक बोझ हूँ।”

जया कहती है, “मेरे मन में आया कि खुदकुशी कर लूँ। ऐसा नहीं कि मैं मरना चाहती थी, मैं बस इस निराशा से बाहर आना चाहती थी। वैसे तो मुझे लोगों की बहुत फिक्र रहती है, लेकिन जब मैं गहरी निराशा में होती हूँ, तो मुझे किसी की परवाह नहीं रहती और किसी बात में मेरा मन नहीं लगता।”

जब अदिति और जया को पहली बार गहरी निराशा (डिप्रेशन) हुई, तब उनकी उम्र 13-14 साल थी। इस उम्र में कई नौजवान कभी-कभी उदास हो जाते हैं, लेकिन अदिति और जया सिर्फ उदास नहीं, बल्कि गहरी निराशा की शिकार थीं। वे हफ्तों या महीनों तक उदास रहती थीं। अदिति कहती है, “उस वक्‍त ऐसा लगता है, जैसे आप एक गहरे गड्ढे में गिर गए हों जिसमें घुप अँधेरा है और निकलने का कोई रास्ता नहीं है। आपका दिमाग काम नहीं करता और आप समझ नहीं पाते कि आपको क्या हो गया है।”

यह कहानी सिर्फ अदिति और जया की नहीं है। आजकल बहुत-से नौजवान गहरी निराशा के शिकार हो रहे हैं और यह बीमारी इस उम्र के बच्चों में बहुत तेज़ी से बढ़ती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि गहरी निराशा की वजह से 10 से 19 साल के बहुत-से लड़के-लड़कियाँ बीमार पड़ जाते हैं, वे ज़्यादा कुछ नहीं कर पाते और दिमागी तौर पर भी कमज़ोर हो जाते हैं।

निराशा के लक्षण 8-10 साल के बच्चों में भी पाए जा सकते हैं। कुछ लक्षण हैं, नींद न आना या बहुत नींद आना, भूख न लगना या ज़्यादा भूख लगना या फिर वज़न का घटना-बढ़ना। कुछ और लक्षण भी हो सकते हैं, जैसे बहुत उदास होना, मायूस होना, ऐसा सोचना कि मैं किसी लायक नहीं और उम्मीद खो बैठना। इसके अलावा कुछ बच्चे दूसरों से मिलना-जुलना छोड़ देते हैं, उनके लिए कुछ याद रखना या किसी बात पर ध्यान देना मुश्किल हो जाता है, वे खुदकुशी करने की सोचने लगते हैं और कुछ तो ऐसा करने की कोशिश भी करते हैं। ऐसे ही और भी कई लक्षण हो सकते हैं। जब डॉक्टरों को लगता है कि कोई निराशा का शिकार है, तो वे यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि क्या उस व्यक्‍ति में ऊपर बताए कुछ लक्षण हफ्तों से नज़र आ रहे हैं, जिनकी वजह से वह रोज़मर्रा के काम नहीं कर पा रहा है।

नौजवानों में गहरी निराशा के क्या कारण हो सकते हैं?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एक व्यक्‍ति को कई कारणों से गहरी निराशा हो सकती है, जैसे लोगों का उसके साथ व्यवहार, तनाव या फिर कोई शारीरिक कारण।

शारीरिक कारण। कभी-कभी गहरी निराशा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है, जैसे जया के मामले में था। इसका मतलब यह बीमारी माता-पिता से बच्चों में आ सकती है। इस दौरान शायद उनके दिमाग में रसायनिक प्रक्रिया पर असर पड़ता है। दिल की बीमारी या हार्मोन में उतार-चढ़ाव से भी निराशा हो सकती है। इसके अलावा लंबे समय तक नशीली दवाइयाँ लेने से भी निराशा हो सकती है या यह और बढ़ सकती है। *

तनाव। थोड़ा-बहुत तनाव होने में कोई नुकसान नहीं, लेकिन बहुत ज़्यादा तनाव होने से या काफी समय तक तनाव में रहने से एक इंसान की सेहत और दिमागी हालत पर गहरा असर पड़ सकता है। ऐसे में नौजवान गहरी निराशा में डूब सकते हैं, क्योंकि इस उम्र में उनके अंदर कई बदलाव हो रहे होते हैं। लेकिन निराशा होने की असल में कौन-से कारण हैं, यह पूरी तरह पता नहीं चल पाया है। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसा हमने पहले देखा था।

तनाव के कई कारण होते हैं, जिनसे निराशा हो सकती है। जैसे, माता-पिता का तलाक या उनका एक-दूसरे से अलग हो जाना, किसी अपने की मौत, लैंगिक दुर्व्यवहार, मार-पीट, बड़ी दुर्घटना या बीमारी। कई बार पढ़ने-लिखने में कमज़ोर होने की वजह से एक बच्चे को लग सकता है कि उससे कोई प्यार नहीं करता, ऐसे में वह निराशा में डूब सकता है। इसके अलावा कई बार माता-पिता बच्चों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद करते हैं, जैसे स्कूल में अच्छे नंबर लाना या वे खुद गहरी निराशा के शिकार होते हैं, जिससे बच्चों को उनका प्यार नहीं मिलता। कुछ माता-पिता ऐसे भी होते हैं कि पता नहीं कब क्या कर बैठें, तब भी बच्चों को निराशा हो सकती है। कई बार तो स्कूल में दूसरे बच्चे परेशान करते हैं या कुछ बच्चे भविष्य के बारे में सोचकर परेशान रहते हैं। वजह चाहे जो भी हो, अगर नौजवानों को गहरी निराशा होती है, तो वे क्या कर सकते हैं?

अपना खयाल रखिए

अगर आपको गहरी निराशा है, तो मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से सलाह-मशविरा करने और दवाइयाँ लेने से आपको बहुत मदद मिल सकती है। * यीशु मसीह ने कहा, “जो भले-चंगे हैं उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है।” (मरकुस 2:17) बीमारी किसी भी तरह की हो सकती है, शारीरिक या मानसिक। ऐसे में अपने जीने के तौर-तरीके में बदलाव करने से तन और मन दोनों को फायदा हो सकता है।

अगर आपको गहरी निराशा है, तो अपनी सेहत का खयाल रखिए। जैसे, पौष्टिक खाना खाइए, भरपूर नींद लीजिए और नियमित तौर पर कसरत कीजिए। कसरत करने से शरीर के अंदर कुछ रसायन पैदा होते हैं, जिससे मूड अच्छा हो जाता है, आपमें और भी फुर्ती आ जाती है और अच्छी नींद आती है। यह जानने की कोशिश कीजिए कि आपको कब और किन बातों से निराशा होती है। पहले से सोचकर रखिए कि निराशा होने पर आप क्या कदम उठाएँगे। किसी ऐसे व्यक्‍ति से बात कीजिए, जिस पर आपको भरोसा है। जब परिवार के सदस्यों और दोस्तों का साथ हो, तो निराशा का सामना करना आसान हो जाता है, कभी-कभी तो इसके लक्षण कम भी हो जाते हैं। किसी डायरी या नोटबुक में लिखिए कि आपको कैसा लग रहा है। ऐसा करने से जया को बहुत फायदा हुआ, जिसके बारे में हमने शुरू में बात की थी। लेकिन सबसे बढ़कर आपको फायदा परमेश्वर के साथ दोस्ती करने से होगा। इससे आपको खुशी मिलेगी। यीशु मसीह ने कहा था, “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है।”—मत्ती 5:3.

पौष्टिक खाना खाइए, कसरत कीजिए और भरपूर नींद लीजिए

परमेश्वर के बारे में जानने से आपको बहुत फायदा होगा

अदिति और जया यीशु की इस बात से पूरी तरह सहमत हैं। अदिति ऐसे काम करने में लगी रहती है, जिससे परमेश्वर के साथ उसकी दोस्ती और भी गहरी होती है। वह कहती है, ‘इस तरह के काम करने से मैं अपनी परेशानियों के बारे में सोचने के बजाय लोगों पर ध्यान दे पाती हूँ। ऐसा करना हमेशा आसान तो नहीं होता, लेकिन इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है।’ जया कहती है कि उसे प्रार्थना करके और बाइबल पढ़कर अच्छा लगता है। वह कहती है, “परमेश्वर से पूरे दिल से प्रार्थना करने से मुझे बहुत सुकून मिलता है। बाइबल पढ़कर मुझे ऐसा लगता है कि परमेश्वर की नज़र में मैं बहुत अनमोल हूँ और वह सच में मेरी फिक्र करता है। मैं यह भी सोच पाती हूँ कि भविष्य में सबकुछ अच्छा हो जाएगा।”

हम जिस माहौल में पले-बढ़े हैं, हमारी ज़िंदगी में जो कुछ हुआ है और हमें अपने माता-पिता से जो जीन्स मिलते हैं, इन सब बातों का हमारी सोच और भावनाओं पर काफी असर होता है। यह बात हमारा बनानेवाला परमेश्वर यहोवा जानता है। कई बार वह हमारे दोस्तों या परिवार के सदस्यों के ज़रिए हमें सहारा देता है और हमारी हिम्मत बढ़ाता है। बहुत जल्द ऐसा वक्‍त आएगा, जब परमेश्वर हर तरह की बीमारी ठीक कर देगा, गहरी निराशा भी। पवित्र शास्त्र में लिखा है कि उस वक्‍त कोई “न कहेगा, ‘मैं बीमार हूँ।’”—यशायाह 33:24.

पवित्र शास्त्र में वादा किया गया है कि परमेश्वर हमारी “आँखों से हर आँसू पोंछ देगा और न मौत रहेगी, न मातम, न रोना-बिलखना, न ही दर्द रहेगा।” (प्रकाशितवाक्य 21:4) इस बात से हमें कितनी हिम्मत मिलती है! अगर आप जानना चाहते हैं कि परमेश्वर ने धरती और इंसानों को किस मकसद से बनाया और वह भविष्य में क्या करनेवाला है, तो हमारी वेबसाइट jw.org पर जाइए। इस वेबसाइट पर आपको बाइबल का एक बढ़िया अनुवाद मिलेगा और कई विषयों पर दिलचस्प लेख मिलेंगे, निराशा के बारे में भी।

^ पैरा. 3 नाम बदल दिए गए हैं।

^ पैरा. 10 बहुत-सी ऐसी बीमारियाँ भी हैं, जिनसे एक व्यक्‍ति का मूड बदल सकता है। कई दवाइयों और नशीले पदार्थों की वजह से भी मन उदास हो सकता है। इस वजह से एक अच्छे डॉक्टर को दिखाना बहुत ज़रूरी है।

^ पैरा. 14 सजग होइए! किसी खास किस्म के इलाज या थेरेपी का बढ़ावा नहीं देती।