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भाग 3

समस्याओं को कैसे सुलझाएँ

समस्याओं को कैसे सुलझाएँ

“एक-दूसरे के लिए गहरा प्यार रखो, क्योंकि प्यार ढेर सारे पापों को ढक देता है।”—1 पतरस 4:8

जब आप और आपका साथी अपनी शादीशुदा ज़िंदगी की शुरूआत करते हैं, तो आपके जीवन में कुछ समस्याएँ भी आएँगी। हो सकता है इनकी वजह यह हो कि आप दोनों की सोच, भावनाएँ और काम करने का तरीका एक-दूसरे से अलग हो। या हो सकता है कुछ समस्याएँ परिवार के बाहर से या अचानक हालात बदल जाने की वजह से आएँ।

समस्याओं से दूर भागना हमें शायद आसान लगे, लेकिन बाइबल सलाह देती है कि हम अपनी समस्याओं का सामना करें। (मत्ती 5:23, 24) बाइबल में दिए सिद्धांतों को लागू करके आप अपनी समस्याओं को सबसे अच्छी तरह सुलझा सकते हैं।

1 समस्या के बारे में बात कीजिए

बाइबल क्या कहती है: “बोलने का भी समय है।” (सभोपदेशक 3:1, 7) अपनी समस्या के बारे में बात करने में समय बिताइए। ईमानदारी से अपने साथी को बताइए कि फलाँ विषय के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं और उस पर आपकी क्या राय है। हमेशा अपने साथी से ‘सच बोलिए।’ (इफिसियों 4:25) जब आपको अपनी भावनाओं को काबू में रखना मुश्किल लगता है, तब भी अपने साथी पर भड़क मत उठिए। अगर आप ठंडे दिमाग से जवाब दें, तो आपका घर जंग का मैदान नहीं बनेगा।—नीतिवचन 15:4; 26:20.

अगर आप किसी बात पर एक-दूसरे से सहमत न भी हों, तब भी अदब से पेश आइए और ऐसे वक्‍त में भी अपने साथी को प्यार और आदर दिखाना कभी मत भूलिए। (कुलुस्सियों 4:6) जल्द-से-जल्द मामले को निपटाने की कोशिश कीजिए और एक-दूसरे से बातचीत करना बंद मत कीजिए।—इफिसियों 4:26.

आप क्या कर सकते हैं:

  • समस्या के बारे में बात करने के लिए सही वक्‍त ठहराइए

  • जब सुनने की आपकी बारी आए, तो अपने साथी की बात काटने से खुद को रोकिए। आपको भी अपनी राय बताने का मौका मिलेगा

2 सुनिए और समझने की कोशिश कीजिए

बाइबल क्या कहती है: “एक-दूसरे के लिए गहरा लगाव रखो। एक-दूसरे का आदर करने में पहल करो।” (रोमियों 12:10) यह बात बहुत मायने रखती है कि आप किस तरह अपने साथी की बात सुनते हैं। ‘एक-दूसरे का दर्द महसूस करते हुए और नम्र स्वभाव रखते हुए,’ अपने साथी के नज़रिए को समझने की कोशिश कीजिए। (1 पतरस 3:8; याकूब 1:19) उसकी बात सुनने का सिर्फ दिखावा मत कीजिए। जब मुमकिन हो, तो जो काम आप कर रहे हैं, उसे एक तरफ रख दीजिए और अपने साथी पर पूरा ध्यान दीजिए। अगर ऐसा करना मुमकिन न हो, तो उससे पूछिए कि क्या आप इस बारे में बाद में बात कर सकते हैं। अगर आप अपने जीवन-साथी को अपना दोस्त समझेंगे न कि अपना दुश्मन, तो आप ‘उतावली से क्रोधित नहीं होंगे।’—सभोपदेशक 7:9.

आप क्या कर सकते हैं:

  • पहले से कोई राय कायम किए बगैर, अपने साथी की बात सुनते रहिए, तब भी जब उसकी बात आपको अच्छी न लग रही हो

  • शब्दों के पीछे छिपे मतलब को समझने की कोशिश कीजिए। अपने साथी के हाव-भाव और बात करने के लहज़े पर गौर कीजिए

3 आपने जो तय किया है, उसके मुताबिक काम भी कीजिए

बाइबल क्या कहती है: “परिश्रम से सदा लाभ होता है, परन्तु [“सिर्फ बातें,” एन.डब्ल्यू.] करने से केवल घटी होती है।” (नीतिवचन 14:23) आप दोनों का सिर्फ एक अच्छे नतीजे पर पहुँचना ही काफी नहीं है। आपने जो तय किया है, उसके मुताबिक आपको काम भी करना होगा। हो सकता है इसमें आपको कड़ी मेहनत करनी पड़े, मगर आपको इसका फायदा ज़रूर होगा। (नीतिवचन 10:4) अगर आप मिलकर काम करें, तो आपको अपनी कड़ी मेहनत का “अच्छा फल” मिलेगा।—सभोपदेशक 4:9.

आप क्या कर सकते हैं:

  • तय कीजिए कि अपनी समस्या को सुलझाने के लिए आप दोनों निजी तौर पर क्या-क्या कारगर कदम उठाएँगे

  • समय-समय पर जाँचिए कि आपने किस हद तक अपनी समस्या को सुलझा लिया है