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तोरा क्या है?

तोरा क्या है?

शास्त्र से जवाब

 शब्द “तोरा” दरअसल इब्रानी शब्द तोह-राह से निकला है जिसका अनुवाद “सीख,” ‘सिखायी बातें’ या “कानून” भी किया जा सकता है। a (नीतिवचन 1:8; 3:1; 28:4) आगे दिए उदाहरण दिखाते हैं कि यह इब्रानी शब्द बाइबल में किस तरह इस्तेमाल किया गया है।

  •   तोह-राह अकसर बाइबल की पहली पाँच किताबों को कहा जाता है यानी उत्पत्ति, निर्गमन, लैव्यव्यवस्था, गिनती और व्यवस्थाविवरण। इन्हें पंचग्रंथ (या पैंटाटुक) भी कहा जाता है जो कि एक यूनानी शब्द से निकला है, जिसका मतलब है “पाँच किताबों का एक खंड।” तोरा को मूसा ने लिखा था इसलिए इसे “मूसा के कानून की किताब” भी कहा जाता है। (यहोशू 8:31; नहेमायाह 8:1) जब इसे लिखा गया था तब यह एक  किताब थी, लेकिन बाद में इसे अलग-अलग किताबों में बाँट दिया ताकि इसका इस्तेमाल आसानी से किया जा सके।

  •   तोह-राह  शब्द इसराएल को दिए कानूनों या नियमों के लिए भी इस्तेमाल होता है, जैसे “पाप-बलि का नियम [तोह-राह],” ‘कोढ़ के बारे में नियम’ और ‘नाज़ीर के लिए नियम।’—लैव्यव्यवस्था 6:25; 14:57; गिनती 6:13.

  •   तोह-राह शब्द सीख, सिखायी जानेवाली बातों और शिक्षा के लिए भी इस्तेमाल होता है फिर चाहे ये बातें माँ-बाप की तरफ से हों या फिर किसी समझदार व्यक्‍ति या खुद परमेश्‍वर की तरफ से हों।—नीतिवचन 1:8; 3:1; 13:14; यशायाह 2:3, फुटनोट.

तोरा या पंचग्रंथ में क्या लिखा है?

  •   इसमें बताया गया है कि सृष्टि की शुरूआत से लेकर मूसा की मौत तक परमेश्‍वर लोगों के साथ किस तरह पेश आया।—उत्पत्ति 1:27, 28; व्यवस्थाविवरण 34:5.

  •   इसमें मूसा के कानून में दिए नियम भी लिखे हैं। (निर्गमन 24:3) मूसा के कानून में 600 से भी ज़्यादा नियम हैं। इनमें सबसे जाना-माना नियम है “शेमा,” जो कि यहूदियों की एक प्रार्थना भी है। इसके कुछ शब्द इस तरह हैं, “तू अपने परमेश्‍वर यहोवा से पूरे दिल, पूरी जान और पूरी ताकत से प्यार करना।” (व्यवस्थाविवरण 6:4-9) यीशु ने कहा कि “यही सबसे बड़ी और पहली आज्ञा है।”—मत्ती 22:36-38.

  •   इसमें परमेश्‍वर का नाम यहोवा 1,800 बार आया है। तोरा में कहीं नहीं लिखा कि हमें परमेश्‍वर का नाम नहीं लेना चाहिए, बल्कि इसमें ऐसी आज्ञाएँ लिखी हैं जिनके मुताबिक परमेश्‍वर के लोगों के लिए उसका नाम लेना ज़रूरी था।गिनती 6:22-27; व्यवस्थाविवरण 6:13; 10:8; 21:5.

तोरा के बारे में गलतफहमियाँ

 गलतफहमी: तोरा के नियम कभी नहीं मिटेंगे और इन्हें कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

 सच्चाई: बाइबल के कई अनुवादों में तोरा के कुछ नियमों के बारे में कहा गया है कि वे “सनातन” हैं या “हमेशा के लिए” हैं, जैसे सब्त, याजकपद और प्रायश्‍चित दिन से जुड़े नियम। (निर्गमन 31:16, बुल्के बाइबिल; 40:15; लैव्यव्यवस्था 16:33, 34) मगर इन आयतों में “सनातन” या “हमेशा” शब्दों के लिए जो इब्रानी शब्द इस्तेमाल हुआ है उसका मतलब है कि कोई चीज़ बहुत लंबे समय तक कायम रहेगी, मगर ज़रूरी नहीं कि वह हमेशा-हमेशा तक रहे। b मूसा का कानून करीब 900 साल तक बना रहा, लेकिन परमेश्‍वर ने कहा कि आगे चलकर वह इस कानून की जगह “एक नया करार” करेगा। (यिर्मयाह 31:31-33) “इस तरह [परमेश्‍वर ने] ‘नए करार’ की बात कहकर पहले करार को रद्द कर दिया।” (इब्रानियों 8:7-13) इस नए करार ने आज से कुछ 2,000 साल पहले, पुराने करार की जगह ले ली और यह यीशु मसीह की मौत की वजह से मुमकिन हुआ।—इफिसियों 2:15.

 गलतफहमी: यहूदियों की ज़बानी तौर पर सिखायी जानेवाली परंपराओं और तलमूद का भी उतना ही महत्व है जितना कि तोरा का।

 सच्चाई: बाइबल में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि परमेश्‍वर ने मूसा को तोरा लिखवाने के साथ-साथ ज़बानी तौर पर कोई दूसरा कानून भी दिया था। इसके बजाय, बाइबल कहती है, “यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, ‘तू ये सारी आज्ञाएँ लिख लेना।’” (निर्गमन 34:27) आगे चलकर यहूदियों ने अपने ज़बानी कानून को एक किताब में दर्ज़ किया और यह मिशना के नाम से जाना गया। फिर इसमें कुछ और परंपराएँ जोड़कर तलमूद लिखी गयी। इसका मतलब, ये ज़बानी कानून दरअसल यहूदी परंपराएँ थीं जिन्हें फरीसियों ने बनाया था। अकसर ये परंपराएँ तोरा की बातों से नहीं मिलती थीं। इसलिए यीशु ने फरीसियों से कहा, “तुमने अपनी परंपराओं की वजह से परमेश्‍वर के वचन को रद्द कर दिया है।”—मत्ती 15:1-9.

 गलतफहमी: औरतों को तोरा नहीं सिखाया जाना चाहिए।

सच्चाई: मूसा के कानून में एक आज्ञा यह थी कि पूरा-का-पूरा कानून सभी इसराएलियों को पढ़कर सुनाना चाहिए, औरतों और बच्चों को भी। क्यों? उसी आज्ञा में आगे लिखा है, “ताकि वे सब [अपने] परमेश्‍वर यहोवा के बारे में सुनें और सीखें और उसका डर मानें और इस कानून में लिखी सारी बातों को सख्ती से मानें।”—व्यवस्थाविवरण 31:10-12. c

 गलतफहमी: तोरा में रहस्यमय बातें लिखी हैं।

 सच्चाई: मूसा ने, जिसने तोरा को लिखा था, कहा कि इसका संदेश सबके लिए है और इसे आसानी से समझा जा सकता है, इसमें कोई रहस्यमय या गुप्त बातें नहीं लिखीं। (व्यवस्थाविवरण 30:11-14) यह धारणा कि तोरा में रहस्यमय बातें छिपी हैं, कबालाह नाम के एक यहूदी रहस्यवादी पंथ से शुरू हुई जो शास्त्र की बातों को ‘चतुराई से गढ़कर’ अपने तरीके से समझाता है। d2 पतरस 1:16.

a स्ट्रौंगेस्ट स्ट्रौंग्ज़ एक्ज़ौसटिव कनकॉर्डन्स ऑफ द बाइबल के नए संस्करण में भाग “हीब्रू-ऐरामेइक डिक्शनेरी इंडेक्स टू दी ओल्ड टेस्टेमेन्ट” में ऐंट्री नंबर 8451 देखें।

b थियोलॉजिकल वर्डबुक ऑफ दी ओल्ड टेस्टामेंट, वॉल्यूम 2, पेज 672-673 देखें।

c कई यहूदी धर्म-अधिकारियों ने यह नियम बना दिया था कि औरतों को तोरा नहीं सिखाया जाना चाहिए, जबकि तोरा में ऐसा नहीं लिखा। उदाहरण के लिए, मिशना में रब्बी एलीएज़ेर बेन हिरकेनस की यह बात लिखी है: “जो अपनी बेटी को तोरा सिखाता है वह मानो उसे अश्‍लील बातें सिखाता है।” (सोतह 3:4) यरूशलेम के तलमूद में उसकी यह बात लिखी है: “तोरा की बातें औरतों को सिखाने से अच्छा है कि तोरा को जला दिया जाए।”—सोतह 3:19क.

d उदाहरण के लिए, इनसाइक्लोपीडिया जुडाइका बताती है कि कबालाह पंथ के लोग तोरा के बारे में क्या कहते हैं: “तोरा की किसी भी बात का कोई एक मतलब नहीं है, बल्कि इसमें दी बातों के एक-से-ज़्यादा मतलब हो सकते हैं। इसमें दी बातों को अलग-अलग नज़रिए से देखा जा सकता है और हर एक का मतलब भी अलग हो सकता है।”—दूसरा संस्करण, खंड 11, पेज 659.