इब्रानियों के नाम चिट्ठी 13:1-25

13  भाइयों की तरह एक-दूसरे से प्यार करते रहो।+  मेहमान-नवाज़ी करना* मत भूलना+ क्योंकि ऐसा करके कुछ लोगों ने अनजाने में ही स्वर्गदूतों का सत्कार किया था।+  जो कैद में हैं* उन्हें याद रखो,+ मानो तुम खुद भी उनके साथ कैद में हो।+ और जिनके साथ बुरा सलूक किया जाता है उन्हें भी याद रखो क्योंकि तुम भी उनके साथ एक शरीर का हिस्सा हो।*  शादी सब लोगों में आदर की बात समझी जाए और शादी की सेज दूषित न की जाए+ क्योंकि परमेश्‍वर नाजायज़ यौन-संबंध* रखनेवालों और व्यभिचारियों को सज़ा देगा।+  तुम्हारे जीने का तरीका दिखाए कि तुम्हें पैसे से प्यार नहीं+ और जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो।+ क्योंकि परमेश्‍वर ने कहा है, “मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।”+  इसलिए हम पूरी हिम्मत रखें और यह कहें, “यहोवा* मेरा मददगार है, मैं नहीं डरूँगा। इंसान मेरा क्या कर सकता है?”+  जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं और जिन्होंने तुम्हें परमेश्‍वर का वचन सुनाया है, उन्हें याद रखो+ और उनके चालचलन के अच्छे नतीजों पर गौर करते हुए उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलो।+  यीशु मसीह कल, आज और हमेशा तक एक जैसा है।  तरह-तरह की परायी शिक्षाओं से गुमराह मत होना। क्योंकि परमेश्‍वर की महा-कृपा से दिल को मज़बूत करना अच्छा है न कि खाने* से, जिससे उन लोगों को फायदा नहीं होता जो उसमें लगे रहते हैं।+ 10  हमारी एक ऐसी वेदी है जिससे तंबू में पवित्र सेवा करनेवालों को खाने का कोई अधिकार नहीं।+ 11  क्योंकि महायाजक जिन जानवरों का खून पाप-बलि के तौर पर पवित्र जगह ले जाता है, उनकी लाश छावनी के बाहर जलायी जाती है।+ 12  इसलिए यीशु ने भी शहर के फाटक के बाहर दुख उठाया+ ताकि वह अपने खून से लोगों को पवित्र कर सके।+ 13  इसलिए आओ हम भी अपने ऊपर वह बदनामी लिए हुए जो उसने सही थी,+ छावनी के बाहर उसके पास जाएँ 14  क्योंकि यहाँ हमारा ऐसा शहर नहीं जो हमेशा तक रहे, बल्कि हम उस शहर का बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं जो आनेवाला है।+ 15  आओ हम यीशु के ज़रिए परमेश्‍वर को तारीफ का बलिदान हमेशा चढ़ाएँ,+ यानी अपने होंठों का फल+ जो उसके नाम का सरेआम ऐलान करते हैं।+ 16  इतना ही नहीं, भलाई करना और जो तुम्हारे पास है उसे दूसरों में बाँटना मत भूलो+ क्योंकि परमेश्‍वर ऐसे बलिदानों से बहुत खुश होता है।+ 17  जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं उनकी आज्ञा मानो+ और उनके अधीन रहो,+ क्योंकि वे यह जानते हुए तुम्हारी निगरानी करते हैं कि उन्हें इसका हिसाब देना होगा+ ताकि वे यह काम खुशी से करें न कि आहें भरते हुए क्योंकि इससे तुम्हारा ही नुकसान होगा। 18  हमारे लिए प्रार्थना करते रहो क्योंकि हमें यकीन है कि हमारा ज़मीर साफ* है और हम सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं।+ 19  मगर मैं तुम्हें खास तौर पर इसलिए प्रार्थना करने का बढ़ावा देता हूँ ताकि मैं और भी जल्दी तुम्हारे पास लौट सकूँ। 20  हमारी दुआ है कि शांति का परमेश्‍वर, जिसने हमारे महान चरवाहे+ और हमारे प्रभु यीशु को सदा के करार के खून के साथ मरे हुओं में से ज़िंदा किया, 21  वह तुम्हें उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए हर अच्छी चीज़ देकर तैयार करे और यीशु मसीह के ज़रिए हमारे अंदर वह सब काम करे जो परमेश्‍वर को भाता है। उसकी महिमा हमेशा-हमेशा तक होती रहे। आमीन। 22  भाइयो मैं तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि तुम मेरी ये बातें सब्र से सुन लो, जो मैंने तुम्हारा हौसला बढ़ाने के लिए लिखी हैं क्योंकि मेरा यह खत छोटा-सा ही है। 23  मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि हमारे भाई तीमुथियुस को रिहा कर दिया गया है। अगर वह जल्दी आ गया तो मैं उसके साथ आकर तुमसे मिलूँगा। 24  जो तुम्हारे बीच अगुवाई कर रहे हैं उनके साथ-साथ सभी पवित्र जनों को मेरा नमस्कार कहना। इटली+ में रहनेवाले तुम्हें नमस्कार कहते हैं। 25  परमेश्‍वर की महा-कृपा तुम सब पर बनी रहे।

कई फुटनोट

या “अजनबियों पर कृपा करना।”
शा., “बँधे हुए; जो बंधनों में हैं।”
या शायद, “मानो तुम भी उनके साथ दुख सह रहे हो।”
शब्दावली देखें।
अति. क5 देखें।
यानी खाने के नियमों।
शा., “अच्छा।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो