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सुखी परिवार का राज़

शादी का पहला साल—बनाइए खुशहाल

शादी का पहला साल—बनाइए खुशहाल

पति कहता है: “मुझे यह जानकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि मैं और मेरी पत्नी कितने अलग हैं। मुझे सुबह जल्दी उठने की आदत है लेकिन वह देर तक सोना पसंद करती है। उसका मिज़ाज कभी-भी बदल जाता है और मैं हैरान-परेशान रह जाता हूँ! और हाँ, जब मैं खाना बनाता हूँ तो वह मीन-मेख निकालती है और बर्तन पोंछनेवाले कपड़े से हाथ पोंछने पर वह मुझसे चिढ़ जाती है।”

पत्नी कहती है: “मेरे पति बहुत कम बोलते हैं। लेकिन मैं ऐसे परिवार में पली-बढ़ी हूँ जहाँ सभी बातूनी थे। हम खाना खाते वक्‍त खूब बातें किया करते थे। मुझे अपने पति की कुछ आदतें बिलकुल पसंद नहीं। जब वे खाना बनाते वक्‍त बर्तन पोंछनेवाले कपड़े से हाथ पोंछते हैं, तो मुझे बड़ा गुस्सा आता है। सच, इन मर्दों को समझना बड़ा मुश्‍किल है। आखिर एक पति-पत्नी कैसे अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी में कामयाब हो सकते हैं?”

अगर आपकी नयी-नयी शादी हुई है, तो क्या आपने भी कुछ इसी तरह की चुनौतियों का सामना किया है? क्या आपको अचानक अपने साथी में ऐसी कमियाँ और उसकी अजीबो-गरीब आदतें नज़र आने लगी हैं, जो शादी से पहले की मुलाकातों में नहीं आयी थीं? आप “रोज़-रोज़ उठनेवाली मुश्‍किलें” कैसे कम कर सकते हैं, “जो शादीशुदा लोगों पर आती हैं?”—1 कुरिंथियों 7:28, टूडेज़ इंग्लिश वर्शन।

यह उम्मीद मत कीजिए कि शादी करने के बाद आप रातों-रात कामयाब शादी के हुनर सीख लेंगे। माना कि जब आप कुँवारे थे तो आपने कई हुनर सीखें होंगे, जैसे दूसरों के साथ कैसे अदब से पेश आएँ वगैरह। और शायद आपने अपने होनेवाले साथी से मुलाकात करते वक्‍त इस हुनर को और भी निखारा होगा। लेकिन शादी के बाद, आपके हुनर की एक नए तरीके से परख होती है और आपको कुछ नए हुनर भी सीखने होते हैं। क्या आपसे गलतियाँ होंगी? बेशक होंगी। मगर क्या आप ज़रूरी हुनर सीख पाएँगे? ज़रूर सीख पाएँगे।

किसी भी हुनर में माहिर बनने का सबसे बढ़िया उपाय है, उस बारे में किसी जानकार से सलाह लेना और उस पर अमल करना। शादी के बारे में पति-पत्नी के लिए सबसे उम्दा सलाहकार है, यहोवा परमेश्‍वर। आखिर, उसी ने तो हमें शादी करने की इच्छा के साथ बनाया है। (उत्प. 2:22-24) ध्यान दीजिए, परमेश्‍वर का वचन, बाइबल कैसे आपकी मदद कर सकता है ताकि आप आनेवाली चुनौतियों का सामना कर सकें और वह हुनर सीख सकें, जिससे आपकी जोड़ी सिर्फ पहले साल ही नहीं बल्कि हमेशा सलामत रहे।

पहला हुनर। अपने साथी से सलाह-मशविरा करना सीखिए

चुनौतियाँ क्या-क्या हैं?

जापान में रहनेवाला केजी * कभी-कभी भूल जाता है कि उसके फैसलों का उसकी पत्नी पर भी असर होता है। वह कहता है, “मैं अपनी पत्नी से सलाह किए बिना ही न्यौते कबूल कर लेता हूँ। लेकिन बाद में मुझे पता चलता है कि मेरी पत्नी किसी वजह से नहीं आ सकती।” ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाला ऐलन नाम का एक पति कहता है, “मुझे लगता है कि पत्नी से सलाह करना हम मर्दों की शान के खिलाफ है।” शायद अपनी परवरिश की वजह से ऐलन ऐसा सोचता है और इसलिए अपनी पत्नी से मशविरा करना उसके लिए एक चुनौती है। ब्रिटेन में रहनेवाली डाइआन के बारे में भी यह सच है। वह कहती है, “कुछ भी करने से पहले मैं अपने परिवारवालों से सलाह लेती थी, इसलिए आज शादी के बाद भी पति से सलाह लेने के बजाय मैं पहले अपने परिवारवालों से सलाह लेती हूँ।”

हल क्या है?

याद रखिए कि यहोवा परमेश्‍वर शादी-शुदा जोड़े को “एक तन” समझता है। (मत्ती 19:3-6) उसकी नज़र में, कोई भी इंसानी रिश्‍ता एक पति-पत्नी के रिश्‍ते से बढ़कर नहीं! इस रिश्‍ते को मज़बूत बनाए रखने के लिए उनका खुलकर बातचीत करना बेहद ज़रूरी है।

यहोवा परमेश्‍वर ने अब्राहम से जिस तरह बात की, उस पर गौर करने से पति-पत्नी काफी कुछ सीख सकते हैं। उदाहरण के लिए, कृपया बाइबल में उत्पत्ति 18:17-33 पढ़िए और उनकी चर्चा पर ध्यान दीजिए। परमेश्‍वर ने यहाँ अब्राहम को तीन तरह से इज़्ज़त बख्शी। (1) यहोवा ने उसे समझाया कि वह क्या करनेवाला है। (2) उसने अब्राहम की बात ध्यान से सुनी। (3) अब्राहम की बात ध्यान में रखते हुए यहोवा अपने फैसले में फेरबदल करने के लिए तैयार था। अपने साथी के साथ सलाह-मशविरा करते वक्‍त आप कैसे यहोवा की मिसाल पर चल सकते हैं?

इसे आज़माइए: किसी भी मामले पर सलाह-मशविरा करते वक्‍त आप अपने साथी को (1) समझाइए कि आप उस मामले से किस तरह निपटेंगे। आपकी बात से यह ज़ाहिर होना चाहिए कि आप सुझाव दे रहे हैं न कि फैसला सुना रहे हैं। इस तरह बात मत कीजिए मानो आपकी बात पत्थर की लकीर है। (2) अपने साथी से उसकी राय पूछिए और उसे कबूल कीजिए फिर चाहे उसकी राय अलग क्यों न हो। (3) एक “लिहाज़ करनेवाले इंसान” बनिए और जहाँ तक मुमकिन हो, अपने साथी की पसंद-नापसंद का ध्यान रखते हुए अपने फैसले में फेरबदल कीजिए।—फिलि. 4:5.

दूसरा हुनर। व्यवहार-कुशलता दिखाना सीखिए

चुनौतियाँ क्या-क्या हैं?

आप जिस परिवार और माहौल में पले-बढ़े हैं शायद इस वजह से आपको अपनी राय बड़ी सख्ती और रुखाई से पेश करने की आदत हो। यूरोप में रहनेवाले लीऐम को लीजिए। वह कहता है, “मैं जहाँ पला-बढ़ा हूँ वहाँ आम तौर पर लोग बिना सोचे-समझे बात करते हैं। मुझे भी रुखाई से बात करने की आदत है और अकसर मेरी पत्नी मुझसे नाराज़ हो जाती है इसलिए मुझे नरमी से बात करना सीखना पड़ा।”

हल क्या है?

यह मत मान बैठिए कि आप जिस लहज़े में बात करने के आदी हैं, वह आपके साथी को भी पसंद आएगा। (फिलिप्पियों 2:3, 4) प्रेषित पौलुस ने एक मिशनरी को जो सलाह दी थी, वह सलाह नए नवेले जोड़े के लिए भी फायदेमंद है। उसने लिखा, “प्रभु के दास को लड़ने की ज़रूरत नहीं बल्कि ज़रूरी है कि वह नर्मी से पेश आए।” यूनानी में जिस शब्द का अनुवाद “नर्मी” किया गया है, उसका अनुवाद “व्यवहार-कुशलता” भी किया जा सकता है। (2 तीमुथियुस 2:24) व्यवहार में कुशल होने का मतलब है: “हालात की नज़ाकत को समझने की काबिलीयत रखना और दूसरे को बिना ठेस पहुँचाए प्यार से उस हालात से निपटना।”

इसे आज़माइए: जब आप अपने जीवन-साथी से नाराज़ हो जाते हैं, तो उससे बात करते वक्‍त यह मत सोचिए कि आप अपने पति या पत्नी से बात कर रहे हैं बल्कि यह सोचिए कि आप अपने एक दोस्त या मालिक से बात कर रहे हैं। अपने साथी से बात करते वक्‍त आप जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं साथ ही, जिस लहज़े में उससे बात करते हैं, क्या उसी लहज़े में आप अपने दोस्त या मालिक से भी बात करेंगे? अब ज़रा सोचिए कि आपको क्यों अपने जीवन-साथी से और भी ज़्यादा आदर और सोच-समझकर बात करने की ज़रूरत है।—कुलुस्सियों 4:6.

तीसरा हुनर। अपनी नयी भूमिका निभाना सीखिए

चुनौतियाँ क्या-क्या हैं?

हो सकता है, एक पति मुखियापन की अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में ढिलाई बरते या एक पत्नी को बिना सोचे-समझे सुझाव देने की आदत हो। इटली में रहनेवाले एक पति एंटोनियो की मिसाल लीजिए। वह कहता है, “मेरे पापा परिवार से जुड़े कोई भी फैसले लेते वक्‍त मम्मी से कुछ नहीं पूछते थे। इसलिए शुरू-शुरू में मैं भी अपने घर का तानाशाह था।” कनाडा की रहनेवाली एक पत्नी डेबी का कहना है, “मैं चाहती थी कि मेरे पति साफ-सुथरे और बन-ठन के रहें। लेकिन मेरे रोब झाड़ने से वे और भी ज़िद्दी बन जाते थे।”

पति क्या कर सकता है?

कुछ पति बाइबल में दी इन दो सलाहों में फर्क नहीं कर पाते कि पत्नियों को अपने पति के अधीन रहना चाहिए और बच्चों को अपने माता-पिता का कहा मानना चाहिए। उन्हें लगता है कि जैसे बच्चे माता-पिता का हुक्म मानते हैं, उसी तरह पत्नियों को भी अपने-अपने पति का हुक्म मानना चाहिए। (कुलुस्सियों 3:20; 1 पतरस 3:1) बाइबल कहती है, पति “अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे,” लेकिन यही बात माँ-बाप और बच्चों के बारे में नहीं कही गयी है। (मत्ती 19:5) यहोवा परमेश्‍वर कहता है कि पत्नी, पति की सहायक है। (उत्पत्ति 2:18) लेकिन उसने कभी यह नहीं कहा कि बच्चे, माँ-बाप के सहायक हैं। आपका क्या सोचना है, अगर एक पति अपनी पत्नी के साथ इस तरह पेश आता है मानो वह एक बच्ची है, तो क्या वह शादी के इंतज़ाम का आदर कर रहा होगा?

दरअसल परमेश्‍वर का वचन आप पतियो से गुज़ारिश करता है कि आप अपनी-अपनी पत्नियों से उसी तरह पेश आएँ, जिस तरह यीशु, मसीही मंडली के साथ पेश आता है। अगर आप चाहते हैं कि आपकी पत्नी को आपका मुखियापन कबूल करने में आसानी हो तो (1) उससे यह उम्मीद मत कीजिए कि वह फौरन आपकी बात मान जाएगी और अधीनता दिखाने में उससे कोई भूल नहीं होगी। (2) अपनी पत्नी से अपने शरीर के समान प्यार कीजिए, तब भी जब परेशानियाँ खड़ी होती हैं।—इफिसियों 5:25-29.

पत्नी क्या कर सकती है?

इस बात को कबूल कीजिए कि आपके पति को परमेश्‍वर ने आप पर मुखिया ठहराया है। (1 कुरिंथियों 11:3) इसलिए अगर आप पति का आदर करेंगी, तो आप परमेश्‍वर का आदर कर रही होंगी। अगर आप उसका मुखियापन ठुकराएँगी, तो आप न सिर्फ यह दिखाएँगी कि आप अपने पति के बारे में कैसा महसूस करती हैं बल्कि यह भी कि आप परमेश्‍वर और उसकी माँगों के बारे में कैसा महसूस करती हैं।—कुलुस्सियों 3:18.

किसी समस्या पर चर्चा करते वक्‍त पति पर उँगली उठाने के बजाय, उस परेशानी का हल ढूँढ़ने की कोशिश कीजिए। रानी एस्तेर की मिसाल लीजिए। वह चाहती थी कि उसका पति राजा क्षयर्ष, उसके और उसके लोगों के साथ हो रही ज़्यादती का इंसाफ करे। अपने पति को किसी तरह कसूरवार ठहराने के बजाय रानी ने बड़ी कुशलता से उससे बात की। उसके पति ने उसका सुझाव माना और सही फैसला किया। (एस्तेर 7:1-4; 8:3-8) अगर आप चाहती हैं कि आपका पति आपको दिलो-जान से प्यार करे तो (1) उसे समय दीजिए कि वह मुखियापन की नयी ज़िम्मेदारी उठाने के काबिल बन पाए और (2) उसके गलती करने पर भी आप उसके साथ इज़्ज़त से पेश आएँ।—इफिसियों 5:33.

इसे आज़माइए: आपके साथी को क्या-क्या बदलाव करने हैं इस बात पर गौर करने के बजाय, एक लिस्ट तैयार कीजिए कि आपको अपने अंदर क्या-क्या बदलाव करने हैं। पतियो: अगर आप मुखियापन की ज़िम्मेदारी निभाने में चूक जाते हैं और आपकी पत्नी निराश हो जाती है, तो उससे पूछिए कि आप कैसे सुधार कर सकते हैं और फिर उन सुझावों को लिख लीजिए। पत्नियो: अगर आपके पति को लगता है कि आप उसकी इज़्ज़त नहीं कर रही हैं, तो उससे पूछिए कि आप इस मामले में कैसे सुधार कर सकती हैं और फिर उन सुझावों पर अमल कीजिए।

सही उम्मीद रखिए

शादी-शुदा ज़िंदगी में खुशी हासिल करने की कोशिश करना, साइकिल सिखने की तरह है। आप जानते हैं कि साइकिल सीखते वक्‍त आप गिरेंगे ज़रूर, मगर इससे आपका हौसला बढ़ेगा और आखिरकार आप साइकिल चलाना सीख लेंगे। उसी तरह, शादी-शुदा ज़िंदगी में तजुरबा हासिल करते वक्‍त आपको उम्मीद करनी चाहिए कि आपसे गलतियाँ होंगी और आपको शर्मिंदा होना पड़ेगा, मगर आप ज़रूर कामयाब होंगे।

माहौल को मज़ाकिया बनाए रखिए। अपने साथी की चिंताओं को गंभीरता से लीजिए, साथ ही अपनी गलतियों पर हँसना सीखिए। शादी के पहले साल, अपने साथी को खुश करने के मौके ढूँढ़िए। (व्यवस्थाविवरण 24:5) सबसे बढ़कर, परमेश्‍वर के वचन का मार्गदर्शन लीजिए और उसके मुताबिक चलिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो साल-दर-साल आपकी शादी का रिश्‍ता मज़बूत होता जाएगा। (w10-E 08/01)

^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

खुद से पूछिए . . .

  • क्या मैंने अपने साथी को अपना सबसे करीबी दोस्त बनाया है और उससे सलाह-मशविरा करता हूँ या क्या मैं दूसरों से सलाह-मशविरा करना पसंद करता हूँ?

  • पिछले 24 घंटे में मैंने अपने जीवन-साथी के लिए क्या किया है जिससे उसे एहसास हो कि मैं उससे प्यार करता हूँ और उसकी इज़्ज़त करता हूँ?