इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

सुखी परिवार का राज़

जब जीवन-साथी को खास देखभाल की ज़रूरत हो

जब जीवन-साथी को खास देखभाल की ज़रूरत हो

जब से हमें पता चला है कि मुझे ‘क्रोनिक फटीग सिन्ड्रोम’ * नाम की बीमारी है, तब से मेरे पति को ही दो वक्‍त की रोटी जुटानी पड़ रही है। मगर वो मुझसे घर के खर्चों के बारे में बिलकुल बात नहीं करते। पता नहीं वो मुझे अंधेरे में क्यों रखते हैं? इससे मैं यही समझूँगी न, कि हमारी माली हालत खराब है, तभी वो मुझसे ये सब बातें छिपाते हैं ताकि मैं यह जानकर घबरा न जाऊँ।—निधि। *

शादी अपने साथ कई चुनौतियाँ लाती है। और अगर पति-पत्नी में से किसी एक को गंभीर बीमारी हो जाए, तो मामला और भी पेचीदा हो सकता है। * क्या आपका जीवन-साथी किसी गंभीर बीमारी का शिकार है? अगर हाँ, तो क्या आगे दिया कोई सवाल आपको परेशान करता है: ‘अगर मेरे जीवन-साथी की तबियत और खराब हो गयी, तो मैं क्या करूँगा? मैं कितने समय तक उसकी देखभाल करने के साथ-साथ दूसरे काम कर पाऊँगा, जैसे रसोई पकाना, साफ-सफाई करना और अपनी नौकरी करना? मैं सेहतमंद हूँ, इस बात से मुझे दोष की भावना क्यों सताती है?’

दूसरी तरफ, अगर आप बीमार रहते हैं तो आप शायद सोचें: ‘जब मैं अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी नहीं निभा पा रहा हूँ, तो मैं खुद की इज़्ज़त कैसे करूँ? क्या मेरे जीवन-साथी को इस बात से चिढ़ आती है कि मैं हमेशा बीमार रहता हूँ? क्या मेरे और मेरे साथी के खुशी के दिन बस अब पूरे हो चुके हैं?’

दुख की बात है कि जब पति-पत्नी में से एक गंभीर बीमारी का शिकार होता है, तो कई जोड़े इस मार को नहीं सह पाते और तलाक ले लेते हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आपकी शादी का भी यही अंजाम होगा।

ऐसे बहुत-से जोड़े हैं, जो अपनी ज़िंदगी के मुश्‍किल दौर में एक-दूसरे का साथ दे पाए हैं। यहाँ तक कि उन्होंने गंभीर बीमारी के साथ खुशी-खुशी जीना भी सीख लिया है। योशीआकी और काज़ुको की ही मिसाल लीजिए। योशीआकी की रीढ़ की हड्डी में चोट लगने की वजह से वह बिना किसी मदद के ज़रा भी हिलडुल नहीं सकता। काज़ुको कहती है: “मेरे पति को हर समय मदद की ज़रूरत पड़ती है। इसलिए उनकी देखभाल करते-करते मेरी गर्दन, कंधे और बाज़ुओं में लगातार दर्द रहने लगा है। और इसके लिए मुझे ऑर्थोपीडिक अस्पताल (जोड़ों और रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याओं को हल करने के अस्पताल) के चक्कर काटने पड़ते हैं। अपने बीमार पति की देखभाल करते-करते मैं अकसर निढाल हो जाती हूँ।” इन सारी मुश्‍किलों के बावजूद, काज़ुको कहती है: “पति-पत्नी का हमारा रिश्‍ता और भी मज़बूत हुआ है।”

ऐसे हालात में खुशी बनाए रखने का राज़ क्या है? एक है, यह नज़रिया अपनाना कि बीमारी का शिकार सिर्फ आपका जीवन-साथ ही नहीं बल्कि आप भी हैं। यह बात उन लोगों के अनुभव से पुख्ता हुई है, जो अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में काफी हद तक खुशी और संतोष बनाए रख पाए हैं। और यह सच भी तो है। आखिर जब एक साथी बीमार होता है तो क्या दूसरा भी तकलीफ में नहीं होता? इस तरह सुख-दुख में साथी होने के रिश्‍ते का ब्यौरा उत्पत्ति 2:24 में दिया गया है: “पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे।” इसलिए जब पति-पत्नी में से किसी एक को लंबे समय तक गंभीर बीमारी से जूझना पड़ता है, तो यह निहायत ज़रूरी है कि वे दोनों मिलकर इस चुनौती का सामना करें।

इसके अलावा, खोज से पता चला है कि जो जोड़े गंभीर बीमारी के समय एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ते, वे अपने हालात को कबूल करते हैं और खुद को उनके मुताबिक ढालने के बढ़िया तरीके भी ढूँढ़ निकालते हैं। इस तरह वे जो हुनर सीखते हैं, उनमें बाइबल की सलाहों की झलक मिलती है, जिन्हें हर ज़माने के लोगों ने लागू कर फायदा पाया है। आइए इनमें से तीन सलाहों पर गौर करें।

एक-दूसरे का लिहाज़ कीजिए

सभोपदेशक 4:9 में लिखा है: “एक से दो अच्छे हैं।” क्यों? आयत 10 कहती है: “क्योंकि यदि उन में से एक गिरे, तो दूसरा उसको उठाएगा।” क्या आप अपने साथी की सराहना कर ‘उसे उठाते हैं?’

क्या आप कारगर तरीकों से अपने साथी को मदद देने की सोचते हैं? यॉन्ग जिसकी पत्नी के आधे शरीर को लकवा मार गया है, कहता है: “मैं हर वक्‍त अपनी पत्नी को लिहाज़ दिखाने की कोशिश करता हूँ। जब भी मुझे प्यास लगती है, मैं सोचता हूँ कि उसे भी प्यास लगी होगी। जब भी बाहर का खूबसूरत नज़ारा देखने का मेरा मन करता है, तो मैं उससे पूछता हूँ कि क्या तुम मेरे साथ आना चाहोगी। हम आपस में अपना दर्द बाँटते हैं और मिलकर हालात का सामना करते हैं।”

दूसरी तरफ, अगर आपकी देखभाल की जा रही है, तो क्या ऐसे कुछ काम हैं जो आप अपनी सेहत खतरे में डाले बिना खुद कर सकते हैं? अगर आप ऐसा करेंगे, तो आपका आत्म-सम्मान बना रहेगा और आपके साथी को भी आपकी लगातार देखभाल करते रहने में मदद मिलेगी।

अपने साथी को लिहाज़ दिखाने का सबसे बढ़िया तरीका क्या है, इस बारे में अटकलें लगाने के बजाय क्यों न आप अपने साथी की राय लें? निधि जिसका ज़िक्र लेख की शुरूआत में किया गया है, उसने आखिर में अपने पति को बताया कि जब वह उसे घर की आमदनी और खर्च के बारे में नहीं बताता, तो उसे कैसा महसूस होता है। इसलिए अब उसका पति इस बारे में उससे खुलकर बात करता है।

इसे आज़माइए: एक सूची बनाइए कि किन तरीकों से आपका साथी मौजूदा हालात को सहना आसान बना सकता है। इसी तरह की एक सूची बनाने के लिए अपने साथी से भी कहिए। इसके बाद आपस में सूची बदल लीजिए। फिर इनमें से एक-दो सुझाव चुनिए, जिन पर हकीकत में अमल किया जा सकता है।

शेड्‌यूल में संतुलन बनाए रखिए

बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा: ‘हर एक बात का एक समय होता है।’ (सभोपदेशक 3:1) मगर जब पति-पत्नी में से एक को गंभीर बीमारी हो, तो परिवार की दिनचर्या पूरी तरह गड़बड़ा जाती है। ऐसे में एक अच्छा शेड्‌यूल बनाना और उस पर चलना शायद नामुमकिन लगे। तो फिर इस मामले में कुछ हद तक संतुलन बनाए रखने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

समय-समय पर मिलकर ऐसा दिन या वक्‍त तय कीजिए, जब आप बीमारी और इलाज से जुड़ी चिंताओं के बारे में चर्चा नहीं करेंगे, बल्कि कुछ और करेंगे। जैसे, क्या आप दोनों वे काम कर सकते हैं जो बीमारी से पहले साथ मिलकर करने से आपको खुशी मिलती थी? अगर नहीं, तो क्या आप कुछ नया करने की सोच सकते हैं? आप कोई आसान-सा काम कर सकते हैं, जैसे एक-दूसरे को कुछ पढ़कर सुनाना; या फिर आप नयी भाषा सीखने जैसा मुश्‍किल काम कर सकते हैं। अगर आप मिलकर ऐसा काम करें जिसमें बीमारी कोई बाधा नहीं, तो “एक ही तन बने” रहने का आपका बंधन मज़बूत होगा। साथ ही, आपकी खुशी भी दुगनी हो जाएगी।

संतुलन बनाए रखने का एक और तरीका है, दूसरे लोगों के साथ मेल-जोल बढ़ाना। बाइबल की किताब, नीतिवचन 18:1 में लिखा है: “जो औरों से अलग हो जाता है, वह अपनी ही इच्छा पूरी करने के लिये ऐसा करता है, और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है।” क्या आपने गौर किया, यह आयत कहती है कि सबसे कटे-कटे रहने का दिमाग पर कितना बुरा असर होता है? इसके उलट, दूसरों के साथ कभी-कभी मेल-जोल रखने से आप अच्छा महसूस करेंगे और दोबारा सही नज़रिया बनाए रख पाएँगे। तो क्यों न आप पहल कर दूसरों से कहें कि वे आपसे मिलने आएँ?

जो व्यक्‍ति अपने बीमार साथी की देखभाल करता है, उसके लिए कई बार संतुलन बनाए रखना मुश्‍किल हो जाता है। कुछ तो अपने ऊपर इतना ज़्यादा काम ले लेते हैं कि उसे करते-करते वे पूरी तरह पस्त हो जाते हैं। इस तरह, वे अपनी ही सेहत को खतरे में डाल देते हैं। आखिरकार एक वक्‍त ऐसा आता है जब वे अपने प्यारे साथी की देखभाल करने की हालत में नहीं रहते। इसलिए अगर आप अपने बीमार साथी की देखभाल करते हैं, तो अपनी ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ मत कीजिए। नियमित तौर पर ऐसा समय तय कीजिए जब माहौल शांत हो, ताकि आप खुद को तरो-ताज़ा कर सकें। * कुछ लोगों ने पाया है कि जब वे वक्‍त-वक्‍त पर अपने ही लिंग के किसी भरोसेमंद दोस्त को अपनी चिंताएँ बताते हैं, तो उनका मन हलका हो जाता है।

इसे आज़माइए: अपने साथी का खयाल रखने में जो मुश्‍किलें आपके आड़े आती हैं, उन्हें एक कागज़ पर लिख लीजिए। इसके बाद लिखिए कि इन मुश्‍किलों को पार करने या बेहतर तरीके से निपटने के लिए आप क्या कदम उठा सकते हैं। मुश्‍किलों और उनके हल के बारे में ज़्यादा सोचने के बजाय खुद से पूछिए, ‘हालात को सुधारने का सबसे साफ और आसान तरीका क्या है?’

सही नज़रिया बनाए रखिए

बाइबल खबरदार करती है: “मत कहना, ‘क्या कारण है कि बीते दिन इन दिनों से अधिक अच्छे थे?’” (सभोपदेशक 7:10, NHT) इसलिए इन खयालों में मत डूबे रहिए कि बीमारी के बगैर ज़िंदगी कैसी होती। याद रखिए, इस दुनिया में हमें जो खुशी मिलती है, वह सिर्फ चंद दिनों की होती है। इसलिए ज़रूरी है कि आप अपने हालात कबूल करें और उसी में खुश रहना सीखें।

इस मामले में क्या बात आपकी और आपके साथी की मदद कर सकती है? अपनी आशीषों के बारे में मिलकर चर्चा कीजिए। आपकी सेहत में जो थोड़ा-बहुत सुधार होता है, उसमें खुश होइए। ऐसी बातों के बारे में सोचिए, जिनके पूरे होने का आप बेसब्री से इंतज़ार कर सकें। ऐसे लक्ष्य रखिए जिन्हें हासिल करना आप दोनों के बस में हो।

मसीही पति-पत्नी, शोजी और आकीको ने इस सलाह पर अमल किया और इसके उन्हें बढ़िया नतीजे मिले। जब डॉक्टरी जाँच से पता चला कि आकीको को फाइब्रोमायेलजीआ (पुट्ठों, स्नायू और माँस-पेशियों में दर्द) नाम की बीमारी है, तो उसे और उसके पति को पूरे समय की खास मसीही सेवा छोड़नी पड़ी। क्या इससे वे मायूस हो गए? जी हाँ, और ऐसा होना लाज़िमी था। फिर भी, अपने ही जैसे हालात का सामना करनेवालों के लिए शोजी की यह सलाह है: “जो काम आप अब और नहीं कर सकते, उसके बारे में ज़्यादा मत सोचिए। क्योंकि इससे आपको निराशा ही हाथ लगेगी। इसके बजाय, सही नज़रिया बनाए रखिए। और चाहे आप दोनों को यह उम्मीद क्यों न हो कि आप एक दिन दोबारा आम ज़िंदगी जी पाएँगे, मगर फिलहाल आपका पूरा ध्यान आपकी मौजूदा ज़िंदगी पर होना चाहिए। मेरे लिए इसका मतलब है अपनी पत्नी का ध्यान रखना और उसकी मदद करना।” ऐसी कारगर सलाहों को मानने से आप भी अपने साथी का खयाल रख पाएँगे, जिसे खास देखभाल की ज़रूरत है। (w09-E 11/01)

^ इस बीमारी के शिकार लोगों को लंबे समय तक थकान और मायूसी महसूस होती है। उनकी माँस-पेशियाँ कमज़ोर हो जाती हैं और उन्हें ठीक से नींद नहीं आती।

^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

^ इस लेख में उन जोड़ों के हालात के बारे में चर्चा की गयी है, जिनमें से एक को लंबी बीमारी है। लेकिन इसमें दी जानकारी से उन लोगों को भी मदद मिल सकती है, जो किसी हादसे की वजह से चल-फिर नहीं सकते या जिन्हें डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याएँ हैं।

^ हालात को देखते हुए आप चाहें तो कुछ समय के लिए स्वास्थ्य-सेवा के कर्मचारियों की या ऐसे संगठनों की मदद ले सकते हैं, जो खास तरीकों से सहारा देते हैं।

खुद से पूछिए . . .

फिलहाल मुझे और मेरे साथी को क्या करने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है?

  • बीमारी के बारे में ज़्यादा बात करना

  • बीमारी के बारे में कम बात करना

  • कम चिंता करना

  • एक-दूसरे के लिए और लिहाज़ दिखाना

  • उन कामों में दिलचस्पी लेना, जिन्हें करने में बीमारी कोई बाधा नहीं

  • दूसरे लोगों के साथ ज़्यादा घुलना-मिलना

  • साथ मिलकर लक्ष्य बनाना