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भेदभाव​—दुनिया-भर में फैली एक बीमारी

भेदभाव​—दुनिया-भर में फैली एक बीमारी

भेदभाव एक बीमारी की तरह है। इससे बहुत नुकसान पहुँचता है और कई बार लोगों को पता भी नहीं होता कि उन्हें यह बीमारी है।

भेदभाव के कई चेहरे हैं। कुछ लोग ऐसे लोगों से नफरत करते हैं जो दूसरे देश, जाति या भाषा के हैं। वहीं कुछ लोग दूसरों को इसलिए पसंद नहीं करते क्योंकि वे शारीरिक तौर पर लाचार हैं या फिर उनकी उम्र, पढ़ाई-लिखाई या रंग-रूप उनके जैसा नहीं है। फिर भी उन्हें लगता है कि वे भेदभाव नहीं करते।

कहीं आपको भी यह बीमारी तो नहीं? जब लोग किसी से भेदभाव करते हैं, तो हमें तुरंत पता चल जाता है। लेकिन कई बार हमें एहसास नहीं होता कि हम खुद ऐसा कर रहे हैं। दरअसल हम सब किसी-न-किसी तरह भेदभाव करते हैं। इस बारे में समाज विज्ञान के प्रोफेसर डेविड विलियम्स ने कहा, ‘कुछ लोगों के मन में पहले से किसी समाज के बारे में गलत राय होती है। ऐसे में जब वे उस समाज के किसी व्यक्‍ति से मिलते हैं, तो उनसे भेदभाव करते हैं, भले ही उन्हें इसका एहसास न हो।’

यूरोप के रहनेवाले योवीट्‌स के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। उसके देश में एक ऐसी जाति है, जिससे लोग नफरत करते हैं। वह कहता है, “मुझे लगता था कि उस जाति का एक भी इंसान अच्छा नहीं है। मुझे एहसास ही नहीं हुआ कि मैं भेदभाव कर रहा हूँ। मेरा मानना था कि वे लोग तो हैं ही ऐसे।”

बहुत-सी सरकारों ने जातिवाद और भेदभाव मिटाने के लिए कई कायदे-कानून बनाए हैं। फिर भी वे भेदभाव की समस्या जड़ से नहीं मिटा पायी हैं। वह इसलिए कि भेदभाव की शुरूआत एक व्यक्‍ति के मन में होती है। एक व्यक्‍ति को तब तो सज़ा दी जा सकती है, जब वह किसी के साथ भेदभाव करता है, लेकिन अगर वह मन में किसी के बारे में गलत राय कायम करे, तो कानून कुछ नहीं कर सकता। तो क्या भेदभाव को कभी पूरी तरह मिटाया जा सकता है? क्या इस बीमारी का कोई इलाज है?

इस पत्रिका में ऐसे पाँच सुझाव बताए गए हैं, जिन्हें आज़माकर बहुत-से लोगों ने भेदभाव करना छोड़ दिया है।