इस जानकारी को छोड़ दें

पवित्र शास्त्र सँवारे ज़िंदगी

मैं बुराई के दलदल में धँसता जा रहा था

मैं बुराई के दलदल में धँसता जा रहा था
  • जन्म: 1952

  • देश: अमरीका

  • अतीत: गुस्सैल स्वभाव का और हिंसक

मेरा बीता कल:

मैं अमरीकी राज्य कैलिफोर्निया के लॉस ऐंजलिस शहर में पला बढ़ा। मेरा परिवार ऐसे इलाकों में रहा जो बहुत बदनाम थे। वे ड्रग्स के लिए जाने जाते थे। वहाँ की सड़कों पर गुंडे घूमते रहते थे। हम छ: भाई-बहन थे और मैं दूसरे नंबर पर था।

मम्मी हम बच्चों को इवेंजलिकल चर्च ले जाया करती थी। लेकिन करीब 13 साल की उम्र के बाद मैं दोहरी ज़िंदगी जीने लगा। मैं हर रविवार को चर्च में गाना गाता था, पर हफ्ते के बाकी दिन मैं पार्टियाँ करता था, ड्रग्स लेता था और ऐयाशी करता था।

मुझे बहुत जल्दी गुस्सा आता था और मैं दूसरों को मारने-पीटने लगता था। मेरे हाथ में कुछ भी आ जाता उसी से मैं लोगों की पिटाई करने लगता था। चर्च से मैंने जो सीखा उससे मेरा गुस्सा शांत नहीं हुआ। इसके बजाय मैं यह कहता था, “बदला लेना प्रभु का काम है और मैं उसका ज़रिया हूँ!” जब मैं हाई स्कूल में था तो ब्लैक पैंथर्स नाम का एक राजनैतिक दल था, जो लोगों को उनका हक दिलाने के लिए हिंसा करता था। उसे देखकर मैं भी विद्यार्थियों को उनका हक दिलाने के लिए एक स्टूडेंट यूनियन से जुड़ गया। कई बार हम इस तरह आंदोलन करते थे कि स्कूल को कुछ वक्‍त के लिए बंद करना पड़ता था।

मैं इतना गुस्सैल स्वभाव का था कि सिर्फ आंदोलन करना मेरे लिए काफी नहीं था। इसलिए मैं रंग-भेद को लेकर लोगों से मार-पीट करने लगा। जैसे, कई मौकों पर मैं अपने दोस्तों के साथ ऐसी फिल्में देखने जाता था, जिनमें दिखाया जाता था कि पुराने ज़माने में अमरीका में कैसे अफ्रीका से लाए गुलामों पर बुरी तरह ज़ुल्म किया जाता था। यह देखकर हमारा खून खौल उठता था और हम उसी सिनेमा हॉल में बैठे गोरे लड़कों को पीटने लगते थे। इसके बाद हम ऐसे इलाकों में जाते थे जहाँ गोरे लोग रहते थे, ताकि हम और भी लोगों को पिट सकें।

जब मैं 18-19 साल का हुआ तो मैं और मेरे भाई कानून की नज़र में मुजरिम बन गए। मेरा एक छोटा भाई एक जाने-माने गैंग का सदस्य था। इसलिए मैं भी उस गैंग में शामिल हो गया। इस तरह मैं बुराई के दलदल में धँसता चला गया।

पवित्र शास्त्र ने मेरी ज़िंदगी किस तरह बदल दी?

मेरा एक दोस्त था जिसके मम्मी-पापा यहोवा के साक्षी थे। उन्होंने मुझे सभाओं के लिए बुलाया और मैं उनमें जाने लगा। पहली सभा से ही मैं जान गया कि साक्षी दूसरों से बहुत अलग हैं। सभा के दौरान सभी के हाथों में बाइबल होती थी, जिसे वे खोल-खोलकर पढ़ते थे। यहाँ तक कि बच्चे और नौजवान भी सभा में भाग पेश करते थे! और मैं यह जानकर हैरान रह गया कि परमेश्‍वर का नाम यहोवा है। (भजन 83:18) सभा में लोग इसे इस्तेमाल भी कर रहे थे। वहाँ हाज़िर लोग अलग-अलग राष्ट्रों से थे, मगर उनमें कोई भेदभाव नहीं था।

शुरू-शुरू में मैं साक्षियों से बाइबल के बारे में नहीं सीखना चाहता था, मगर मुझे उनकी सभाओं में जाना अच्छा लगता था। एक रात जब मैं उनकी सभा में था तो मेरे कुछ दोस्त संगीत का एक प्रोग्राम देखने गए। वहाँ उन्हें एक लड़के का जैकिट पसंद आ गया। जब उन्होंने उससे जैकिट माँगा तो उसने देने से इनकार कर दिया। इस पर उन्होंने उसे पीट-पीटकर मार डाला। अगले दिन वे इस बारे में शेखी मारने लगे। और जब इतने बड़े अपराध के लिए उन्हें अदालत में पेश किया गया, तो उन्होंने इस बात को हँसी में उड़ा दिया। उनमें से कई लोगों को उम्र-कैद की सज़ा हो गयी। मुझे जब इस बारे में पता चला तो मैंने राहत की साँस ली कि उस रात मैं उनके साथ नहीं था। तभी मैंने सोच लिया कि मैं खुद को बदलूँगा और मैं बाइबल का अध्ययन करूँगा।

मेरे साथ कई बार भेदभाव हुआ था। इसलिए जब मैंने देखा कि यहोवा के साक्षी एक-दूसरे के साथ किस तरह पेश आते हैं तो मैं हैरान रह गया। जैसे, जब एक गोरे भाई को विदेश जाना था तो उसने अपने बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी एक काले भाई-बहन के परिवार को दी। उसी तरह, जब एक काले नौजवान को रहने के लिए जगह चाहिए थी तो एक गोरे भाई-बहन के परिवार ने उसे अपने घर में रखा। यह देखकर मुझे पूरा यकीन हो गया कि यहोवा के साक्षी ही यूहन्‍ना 13:35 में दी यीशु मसीह की सलाह मानते हैं। वहाँ लिखा है, “अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।” मैं समझ गया कि यहोवा के साक्षी ही एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं।

जैसे-जैसे मैं बाइबल का अध्ययन करने लगा, मुझे एहसास हुआ कि मुझे खुद को बदलना होगा, अपनी सोच बदलनी होगी। मुझे गुस्सा और मार-पीट करना छोड़कर लोगों के साथ शांति से रहना होगा। मुझे खुद को यकीन दिलाना था कि यही जीने का सही तरीका है। (रोमियों 12:2) धीरे-धीरे मैं बदलाव करने लगा। फिर जनवरी 1974 में मैंने बपतिस्मा लिया और यहोवा का एक साक्षी बन गया।

मुझे एहसास हुआ कि मुझे खुद को बदलना होगा। मुझे गुस्सा और मारपीट करना छोड़कर लोगों के साथ शांति से रहना होगा। मुझे खुद को यकीन दिलाना था कि यही जीने का सही तरीका है

लेकिन मुझे एहसास हुआ कि बपतिस्मे के बाद भी मुझे अपने गुस्से पर काबू करना है। एक बार जब मैं घर-घर प्रचार कर रहा था, तो एक चोर मेरी गाड़ी से रेडियो चुराकर भागने लगा। मैं भी उसके पीछे-पीछे भागा। जैसे मैं उसके नज़दीक पहुँचा, उसने रेडियो फेंका और वहाँ से भाग गया। जब मैंने यह बात प्रचार में आए भाई बहनों को बतायी तो एक प्राचीन ने मुझसे पूछा, “स्टीवन, अगर तुम उसे पकड़ लेते तो उसके साथ क्या करते हैं?” उनके इस सवाल से मैं समझ गया कि मुझे अब भी अपने गुस्से पर काबू पाना है।

अक्टूबर 1974 में मैं पायनियर सेवा करने लगा, यानी हर महीने मैं लोगों को बाइबल से सिखाने के लिए 100 घंटे बिताने लगा। कुछ समय बाद मुझे यहोवा के साक्षियों के विश्‍व-मुख्यालय में सेवा करने का मौका मिला, जो न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन में था। फिर 1978 में मैं अपनी बीमार माँ की देखभाल करने के लिए वापस लॉस ऐंजलिस चला गया। दो साल बाद मेरी आरौंडा से शादी हो गयी। जब तक मेरी मम्मी ज़िंदा थीं तब तक उनकी देखभाल करने में आरौंडा ने मेरी बहुत मदद की। कुछ समय बाद मैं और आरौंडा ‘वॉचटॉवर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड’ गए। स्कूल के बाद हमें पनामा देश भेजा गया ताकि हम वहाँ प्रचार कर सकें। हम आज भी वहीं सेवा कर रहे हैं।

बपतिस्मे के बाद से मेरे सामने ऐसे कई हालात आए, जब मैं गुस्से से भड़क सकता था। मगर मैंने खुद पर काबू रखा। कुछ मौकों पर लोगों ने मुझे भड़काने की कोशिश की, मगर मैं वहाँ से चला गया। और दूसरे मौकों पर जब मामला गरम हो गया तो मैंने उन्हें शांति से निपटाने की कोशिश की। इसके लिए मेरी पत्नी और दूसरे कई लोगों ने मेरी तारीफ की। उन मौकों पर मैं खुद भी दंग रह गया कि मैं कैसे शांत रह पाया! मैं जानता था कि ये सारे बदलाव मैंने खुद के बल पर नहीं किए। बल्कि यह इसलिए हो पाया क्योंकि बाइबल में लोगों को बदलने की ताकत है।​—इब्रानियों 4:12.

मुझे कैसे फायदा हुआ?

बाइबल से मुझे जीने का एक मकसद मिला। इससे मैंने दूसरों के साथ शांति से रहना सीखा। अब मैं लोगों को मारता-पीटता नहीं बल्कि उन्हें परमेश्‍वर को जानने में मदद देता हूँ। मैंने एक ऐसे व्यक्‍ति के साथ भी बाइबल अध्ययन किया जो हाई स्कूल में मेरा दुश्‍मन था! उसके बपतिस्मे के बाद हम कुछ वक्‍त के लिए एक ही घर में रहे। आज भी हम बहुत अच्छे दोस्त हैं। अब तक मैंने और मेरी पत्नी ने 80 से भी ज़्यादा लोगों का बाइबल अध्ययन कराया है और उन्हें साक्षी बनने में मदद दी है।

यहोवा ने मुझे सिखाया है कि जीने का सही तरीका क्या है। उसने मेरी ज़िंदगी खुशियों से भर दी। उसने मुझे कई सच्चे दोस्त भी दिए। इन सबके लिए मैं यहोवा का जितना धन्यवाद करूँ वह कम है!